बारिश की बूंदों में सबकुछ धुल गया... सारी चिंताएं... सारी फिक्र. कभी कभी मन करता है की बस भीगती रहूँ... बिना कुछ सोचे, बिना किसी की परवाह किये. बिलकुल उन्मुक्त ... जैसे आज सुबह बारिश में बच्चे भीग रहे थे.... बस वैसे ही... कुछ नहीं सिर्फ मैं और बारिश की बूँदें . अक्सर बरसातों में मैं चुपचाप बूंदों को निहारती रहती हूँ...बूंदों की स्वरलहरी, बीच बीच में बादलों की गर्जन मानो कोई संगीत पैदा कर रहे हो... या फिर बूँदें किसी जिद्दी बच्चे की तरह स्कूल बंक कर भाग रही हो और बादल हेडमास्टर की तरह गुस्से से गरज रहा हो ....और... और बिजली रानी टीचर की तरह आँखें दिखा कर बच्चों को डरा रही हो रही. इन बूंदों को देखते हुए न जाने ऐसी कितनी कल्पनाएँ मेरे दिलोदिमाग को रोमांचित और आह्लादित कर देती हैं.
जाने क्यों भीगना मुझे बचपन से ही बेहद पसंद है.... हाँ अगर हाथों में चाय की प्याली हो तो फिर बारिश और भी अच्छी लगती है. आज बहुत दिनों बाद मुझे दिल्ली भली लगी . बिलकुल धुली धुली सी दिल्ली... और मैंने आरा को बिलकुल याद नहीं किया.
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