कल के हमकदम आज किधर गए ज़र्द पत्ते थे, पतझर में बिखर गए परछाइयों से जुदा होना आसां न था तेज़ हवा थी अहबाब भी मुकर गए -------------प्रियम्बरा © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’