मैं सूर्य को अपनी हथेलियों में कैद करना चाहती हूँ, ताकि उसकी रोशनी किसी और तक ना पहुंचे, परन्तु सत्य तो यह है की वह सूर्य जो दूर से इतना सुन्दर लगता है, सबके लिए इतना उपयोगी है.… सारे संसार को रोशन करता है , वही करीब जाने पर किसी को भी भस्म करने की क्षमता रखता है। सूर्य को अस्ताचल में जाते हुए देखना अच्छा लग रहा है। सूर्यास्त के पश्चात ये ज़मीं अन्धकार से भीग जाएगी। निशा की कालिमा के बीच रवि के प्रकाश से चमकते हुए पूर्णवासी के चाँद को देखने का इंतज़ार करुँगी। वो चाँद कितना सुन्दर होता है ना बिलकुल गोल, चमकता हुआ सा। गुलाब के फूल की अनछुई कोमल पत्तियों पर मोतियों सी चमकती हुयी पारदर्शी पवित्र ओस की बूँदें दिल को एक अजीब सा सुकून देती है। ये सुकून एक अनोखी भावना को जन्म देती है, जो बासंती हवा से भी चंचल, फगुनाहट के उमंग से ओत - प्रोत, गन्ने की मिठास से भी मीठी प्रतीत होती है। लेकिन ये भावनाएं तभी तक हैं जब तक मैं, मुझ तक सीमित हूँ, नहीं तो समाज की भट्ठी की तपिश इन्हें क्षण भर में झुलसा दे। © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’