इन दिनों अक्सर कुछ अजीब सा सपना आता है। कभी उन सपनों में राजस्थान की तंग गलियों में लोगों से रास्ता पूछते हुए खुद को नंगे पाँव अकेले चलते हुए देखती हूँ, तो कभी ऐसी जगह खुद को देखती हूँ, जहां चारों ओर सिर्फ बर्फ है। उस दौरान मैं अपने ऊपर गिरते बर्फ के फाहों को महसूस भी करती हूँ। कभी-कभी ये भी देखती हूँ कि किसी लाश को कँधे पर उठाए, उसके भार को महसूस करते हुए अनंत में चली जा रही। कभी कभी सपने में ही कुछ याद करने की कोशिश करती हूँ और फिर किसी गहरे कुँए में गिरती चली जाती हूँ। एक रोज़ बिल्कुल सुबह सुबह देखी पापा किताब लेकर कुछ पढ़ा और समझा रहे थे...कुछ समझ नहीं आया। क्या सपने भी डिकोड हो सकते हैं क्या? © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’