मन की गीली मिट्टी पे जो हर्फ़ बोये थे तुमने- अक्सर उनमें कल्पनाओं के फूल खिलते हैं जिनकी खुशबू में भींगे रहते हैं मेरे रात और दिन - दिनों तक । जब भी तेज़ धूप में पौधे सूखने को आते हैं तुम्हारे प्रेम की आर्द्रता उन्हें ज़िन्दगी दे जाती है। कभी जो सूर्य की तपिश बढ़ जाए कल्पनाएं दम तोडने लगे ख्वाब बिलबिलाने लगे झूठी रवायतों की सड़न पौधे की जड़ों तक पहुंचने को आतुर हो - अपने प्रेम की आर्द्रता यूँ ही बनाए रखना जीवन के आखिरी लम्हे तक । © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’