हर ध्वनि एक संगीत को जन्म देती है। चाहे वो लहरों की कल कल हो या फिर चिडियों कि चहचः प्रत्येक स्वर में एक संगीत है। कोई भी संगीत हमे अध्यात्म कि ओर ले जाता है, चाहे वो शास्त्रीय संगीत हो या फिर सूफियाना कलाम। संगीत के संबंध में भारत अपने अतीत पर गर्व कर सकता है। भारत में संगीत कि परम्परा का आरंभ वैदिक काल से ही माना जाता है। बाद कि शताब्दियों में इसे सुव्यवस्थित कर संहिताबध किया गया। संगीत का विकास क्षेत्रीय कला के अनुसार लोकशैली में हुआ। धीरे धीरे उसने शास्त्रीय रुप धारण कर लिया। लेकिन फिर भी संगीत के सात सुर हर शैली में एक से ही लगते हैं। वहीं वाधयंत्र के इतिहास पर जब नज़र डालते हैं तो यही एहसास होता हैं कि शुरुआत में बांसूरी, नद्स्वरम, वीना, गोत्त्वाध्यम,मृदंगम और ढोल जैसे क्षेत्रीय यन्त्र ही उपलब्ध थे । सितार और तबला काफी बाद में आये। अब तो और भी नए वाध्ययंत्रों पर प्रयोग जारी हैं। इनमे अनेक भारतीये संगीताग्याओं के नाम भी शामिल हैं, चाहे पंडित रविशंकर हों या फिर अमजद अली खान । खासतौर पर रविशंकर ने तो एक वाध्ययंत्र कि स्वर लिपि तैयार करने में विशेष निपुणता हासिल कर ली है। इन्होने भा
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’