तू पारस, और, मैं हूँ पत्थर मैं एक शिला, तू शिल्पकार तू रवि, मैं तुझसे रौशन मैं झरना, तू सागर विशाल भटकूँ मैं तीनो लोक, फिर भी तुझ में ही निहित, मेरा संसार © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’