जब तेज़ बारिश होगी, धूप भी छिटकी होगी, बादल की ओट में, सूरज थोड़ा सुस्ताएगा, और रश्मियाँ पानी संग रास रचाएंगी- तब नभ मुस्काएगा और इन्द्रधनुष उग आएगा... यही कहा था उसने- झूठ कहा था उसने ! सालों से आकाश बेरंग हुआ जाता है। सालों से मौसम बदरंग हुआ जाता है। आज भी बारिश थी और धूप भी छिटकी थी बादल की ओट लिए सूरज खड़ा था धुंए से उसका दम घुट रहा था। रश्मियाँ, पानी,नभ, सब खामोश हुए, पौधों की हरियाली अब जाती रही। नभ नहीं, मुस्कुराया, आज भी, इन्द्रधनुष, नहीं उग पाया,आज भी ! © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’