शीशे के उस पार ज़िन्दगी का उजास उजली धूप गुनगुनाती हवा फूल-तितलियाँ आपस में बातें करते आज़ाद पंछी शीशे के इस पार अंतहीन दर्द चुभते हुए दिन अमावस सी ज़िन्दगी पृथ्वी जितना उसका भार शीशे के इस पार और उस पार का अंतर बड़ा है इस पार से हम देख सकते हैं उस पार की हरियाली ज़िन्दगी की सुंदरता पर वहाँ से नहीं देख पाते इस तरफ की जीजिविषा खुद को ज़िंदा रखने का संघर्ष सच मानो तो असल ज़िन्दगी वही जी पाते हैं जो रहते हैं शीशे के इस तरफ कि वो वाकिफ होते हैं ज़िन्दगी के चेहरों से कि वो क्रूर क्षणों में भी सपने देखना नहीं छोड़ते कि वो जानते हैं शीशे के उस तरफ सिर्फ एक छलावा है जीवन का सच तो छिपा है यहीं कही । © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’