कुछ पीले, उदास दिन, चंद खामोश, डूबती शामें, अनगिनत जागती रातें, और... सफ़ेद, संदली, सुबह का इंतज़ार - ज़िन्दगी के पन्नों में, अब यही तो शेष है । © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’