बचपन से ही कृष्ण का चरित्र मुझे आकर्षित करता रहा है। हो सकता है इसका कारण बचपन में कत्थक सीखना रहा हो...जिसमें अधिकतर टुकड़े-भाव नृत्य कृष्ण के चरित्र पर ही आधारित हुआ करते थे । एक वजह ये भी हो सकता है कि हमारे घर में जन्माष्टमी बहुत ही धूमधाम से मनाई जाती थी। मैं कृष्ण के बारे में जितना सुनती , जितना पढ़ती....उनके प्रति प्रेम और भी बढ़ता जाता, उनका किरदार और भी दिलचस्प लगता। वहीं राम के बारे में ज़्यादा करीब से जानने की कभी इच्छा नहीं हुई, मुझे अक्सर ये लगता कि जो व्यक्ति एक गर्भवती स्त्री को अपनी इज़्ज़त के लिए घर से निकाल सकता है वो पुरुषोत्तम कैसे हो सकता है? आज से करीब 15 साल पहले मर्यादा पुरुषोत्तम राम और कृष्ण पर मेरा किसी से विवाद हुआ तब मैं लिखी थी- तुम कहते हो बदल दूं अपनी पसंद मिटा दूं ह्रदय से कृष्ण को और अंकित कर लूँ वहाँ राम का नाम तुम भूल जाते हो पसंद बनाई नहीं जाती वह तो स्वतः उत्पन्न होती है यूँ तो अंतर है दोनों में एक युग का या यूँ कह लो कि एक छलिया है तो दूजा पुरुषों में उत्तम राम पर क्या करूं मुझे कान्हा सच्चा ल...
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’