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Showing posts from May 1, 2016

ज़रूरी सवाल....

मेट्रो में सफर करते हुए हर रोज़ एक अलग ही अनुभव होता है, लेकिन इन दो दिनों में कुछ ऐसी घटनाएं घटी जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। घटना १ (सामान्य डब्बा) कल सुबह ऑफिस आते हुए मेट्रो में बहुत भीड़ थी (जो अक्सर होती है ) . मैं कोने में बुज़ुर्गों के लिए आरक्षित सीट के पास खड़ी हो गयी।  वहीं  सीट पर एक बुज़ुर्ग बैठे सुडोकु खेल रहे थे,  उन्होंने मेरे थैले को अपनी गोद में रख लिया, मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था इसलिए मैंने मना भी किया लेकिन वो रख कर फिर से सुडोकु में व्यस्त हो गए।  मंडी हाउस पर उतरते वक़्त मैंने उन्हें धन्यवाद कहा। घटना २  (महिला डब्बा ) शाम के समय भी मेट्रो में कुछ ज़्यादा ही भीड़ थी।  दो मेट्रो के बाद तीसरी के महिला कोच में थोड़ी जगह मिल पायी।  यमुना बैंक स्टेशन पर मेट्रो के रुकते ही भीड़ का सैलाब जिस तरह धक्का देते हुए अंदर घुसा, वो डरावना था।  अंदर एक महिला अपने बच्चे के साथ बाहर निकलने के लिए गुहार लगा रही थी, लेकिन किसी लड़की/महिला ने उसे बाहर निकालने की पहल नहीं की उलटा वो उससे उलझ पड़ी और उलटी सीधी बातें करने लगें। वो महिला दरवाज़े के पास से भीड़ के धक्के की वजह से बिलकुल अंद