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Showing posts from May 4, 2008

गौरैया

 गौरैया हर  रोज़ तिनका चुन कर लाती है- मेरे घर के छज्जे पर एक घोंसला अब तो बन चुका है उनमें  छोटे छोटे अंडे भी हैं  गौरैया दिन भर उन्हें सेती है , चंद रोज़ बीते - और ... आज  चूजे भी निकल आए । गौरैया अपने बच्चों के लिए खाना लाती है, उनकी चोंच में डालकर फुर्र से उड़ जाती है । हमारा घर चिडियों का खेल्गाह बना हुआ है । धीरे धीरे गौरैया बच्चों को  उड़ना सिखाती है- गिरते - सँभलते वे भी उड़ना सीख लेते हैं, और फिर  एक दिन फुर्र ... घर का छज्जा फ़िर वीरान  हो गया ।

समय

सुनने की कोशिश करती हूँ आने वाले समय की आहट ताकि तैयार कर लूँ ख़ुद को हर परिस्थिति के लिए। लेकिन समय आता है दबे पाँव और पल भर में तबाह कर देता है। जन्म,मृत्यु,सुख, दुःख, सब समय हीं दिखलाता है , वह है मदारी और हमें बन्दर की तरह नचाता है ।

एक पहल

हर रोज़ ऑफिस आते - जाते समय जंतर मंतर से होकर गुजरना पड़ता है, और हर रोज़ मेरी नज़र 1984 भोपाल गैस कांड के भुक्तभोगियों को न्याय दिलाने के लिए धरना पर बैठे उन लोगो पर पड़ती है जो तेज़ धूप हो या फ़िर आंधी-तूफ़ान अपनी जगह पर डट कर बैठे हुए हैं और ये तय कर लिया हैं की वे तब तक लड़ते रहेंगे जब तक उन्हें न्याय नहीं मिल जाता। आश्चर्य होता है ये देख कर की इनलोगों की खबरें ना तो अखबारों में पढ़ने को मिलती हैं और ना हीं किसी न्यूज़ चैनल पर देखने को मिलती हैं । ऐसा भी नहीं कह सकते की उनकी मांग नाजायज़ है । धरने पर बैठे ज्यादातर लोग आज भी तब की लापरवाही की सज़ा भुगत रहे हैं। कई सवाल ऐसे हैं जिनका जवाब अब तक नहीं मिल सका है। बीस साल पहले भोपाल में यूनियन कार्बाइड और डॉ केमिकेल्स की फैक्ट्री से निकले सफ़ेद धुएँ ने लाखों लोगों की ज़िंदगी तबाह कर दी । मेथाइल आइसोसाइनेट गैस के रिसाव का प्रभाव आज भी वहाँ देखने को मिलता है। आज भी वहाँ के पानी में ज़हर घुला हुआ है। उस समय जो भी बच्चे पैदा हुए आज वो बीस साल के हो चुके होंगे । आख़िर उनकी क्या गलती रही होगी जो आज वो किसी ना किसी अपंगता का शिकार