कभी कभी राह चलते हुए कुछ ऐसे दृश्य नज़र आ जाते है, जो मन -मस्तिष्क को झकझोर कर रख देते हैं , नतीजतन देर तक हम उसके असर से बाहर नही आ पाते । मेरा ऑफिस आना - जाना अक्सर निर्माण विहार मेट्रो स्टेशन से होता है। वहाँ सीढ़ियों पर कुछ भीख मांगने वाले अक्सर बैठे दिख जाते है । वैसे मैं व्यक्तिगत तौर पर भीख देने के सख्त खिलाफ हूँ। उनलोगों को लेकर मेरा अनुभव भी कड़वा ही रहा है, फिर भी उनकी तरफ ध्यान चला ही जाता है। उनलोगों में एक बेहद बुज़ुर्ग है, शायद कुष्ठ रोगी भी है... देह के नाम पर हड्डियों का ढांचा मात्र है। अक्सर अपने भिक्षापात्र , जो स्टील का जग है, एक जंजीर से बाँध कर रखते है और उस जंजीर का एक छोर उनके कमर से बंधा होता है । वहीं,एक ऐसा व्यक्ति भी है, जिसके दोनों हाथ नहीं है। ये सभी साथ हैं या अलग अलग, मेरी समझ में अब तक ये नहीं आया । वहाँ अक्सर कुछ बच्चे भी नज़र आते हैं ,जो हर रोज़ भीख मांगने का अलग अलग तरीका अपनाते रहते हैं। कभी लिफ्ट में चढ़ कर ऊपर - नीचे करते रहेंगे, तो कभी किसी और तरीके से अपना मनोरंजन करते रहेंगे। लेकिन ये तो रोज़मर्रा की बातें हैं जिन्हें देखने क
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’