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Showing posts from February 5, 2017

पुल और ज़िन्दगी

मे ट्रो स्टेशन से बाहर निकलते हुए पैदल पार पुल से गुज़रते हुए अनेक ज़िंदगियाँ दिख जाती हैं- पुल के शुरुआत में ही मायूसी ओढ़े एक औरत बैठती है आँचल में उसके पड़े होते हैं कुछ सिक्के उसके पास ही कंचे खेल रहा होता है उसका तोतला बच्चा जब भी कोई पास से गुज़रता है, बच्चे के चेहरे पर दर्द उभरता है कंचा छोड़, हाथ पसारे भागता है उसके पीछे दूसरे हिस्से में बैठता है - गंदे कपड़ों में,गन्दी सी चादर बिछाए बैसाखी वाला वो युवक, जो करता है संवेदनाओं का सौदा हर गुजरने वाले को अपनी बैसाखी दिखाता है करुणा के बदले में माँगता है चन्द सिक्के या गुलाबी नोट! पुल के बीच में अपने दुधमुंहे बच्चे के साथ बैठती है और एक औरत गहरी नींद में सोया बच्चा सिक्का बन जाता है ! पुल और सीढ़ियों के बीच खिलौने और फलों की छोटी छोटी रेहड़ियां भी हैं। कितने सपने हर रोज़ यहां जन्म लेते हैं, कितनी मंज़िलों के रास्ते इसी पुल से गुज़रते हैं, जानें कितनी दोस्ती हर रोज़ यहां बनती और बिगड़ती है कितने प्रेम खामोशी से आगे बढ़ते हैं इसी पुल पर। एक बूढ़ा भी इसी पुल पर रहता था, दिन-प्रतिदिन क्षीण हो रही थी उसकी सांसें

एक उदास शाम

ए क दिन- फूल बेरंग होंगे और बारिश सूखी चिड़ियाँ नहीं सुनाएंगी गीत कोई गिलहरी मुझसे नहीं बतियाएगी पौधे मुझे देखकर झूमेंगे नहीं । वितृष्णा से गुज़रते हुए तब, मैं गढ़ लूँगी अपनी दुनिया- तुम्हारी तरह । करुँगी सबसे बातें कि जैसे कर रही हूँ मैं बातें, खुद से। वहाँ हर चीज़ होगी मेरे मुताबिक़ जो ज़िंदा नहीं वो जीवित होंगे जो पसंद नहीं वो मृत होंगे । रहने लगूँगी मैं कल्पनाओं के घर में बिल्कुल तुम्हारी तरह, और फिर एक दिन- मिटा डालूंगी सत्य और भ्रम के बीच की रेखा, खत्म कर दूँगी सूक्ष्म से विराट का अंतर, तय कर लूँगी अंत से अनंत की दूरी, और विलीन हो जाऊंगी, मैं भी, अनंत में- कि अब समझ पा रही, तुम्हारी सोच को, तुम्हारी तरह- तुम्हारे जाने के बाद । © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!