मे ट्रो स्टेशन से बाहर निकलते हुए पैदल पार पुल से गुज़रते हुए अनेक ज़िंदगियाँ दिख जाती हैं- पुल के शुरुआत में ही मायूसी ओढ़े एक औरत बैठती है आँचल में उसके पड़े होते हैं कुछ सिक्के उसके पास ही कंचे खेल रहा होता है उसका तोतला बच्चा जब भी कोई पास से गुज़रता है, बच्चे के चेहरे पर दर्द उभरता है कंचा छोड़, हाथ पसारे भागता है उसके पीछे दूसरे हिस्से में बैठता है - गंदे कपड़ों में,गन्दी सी चादर बिछाए बैसाखी वाला वो युवक, जो करता है संवेदनाओं का सौदा हर गुजरने वाले को अपनी बैसाखी दिखाता है करुणा के बदले में माँगता है चन्द सिक्के या गुलाबी नोट! पुल के बीच में अपने दुधमुंहे बच्चे के साथ बैठती है और एक औरत गहरी नींद में सोया बच्चा सिक्का बन जाता है ! पुल और सीढ़ियों के बीच खिलौने और फलों की छोटी छोटी रेहड़ियां भी हैं। कितने सपने हर रोज़ यहां जन्म लेते हैं, कितनी मंज़िलों के रास्ते इसी पुल से गुज़रते हैं, जानें कितनी दोस्ती हर रोज़ यहां बनती और बिगड़ती है कितने प्रेम खामोशी से आगे बढ़ते हैं इसी पुल पर। एक बूढ़ा भी इसी पुल पर रहता था, दिन-प्रतिदिन क्षीण हो रही थी उसकी सांसें
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’