कई रिश्तों में बाँधने की कोशिश की थी मैंने - तुम्हे. भूल गयी थी, हर रिश्ते का सिरा जुड़ा है उस मंज़िल से जिसकी बुनियाद ही कमज़ोर पडी है. यूँ लगता है जैसे गुज़रते ज़ीस्त के साथ ये रिश्ता भी ना गुज़र जाए कहीं ... © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’