छोटे शहर की याद बहुत आती है वो सुबह सुबह पूजा की घंटियों की आवाजें फिर फेरीवाले और दूधवाले की पुकार शाम में समोसे और चाय का साथ । जी करता है कुछ वक्त निकाल कर बड़े शहर की भागदौड़ से बहुत दूर चली जाऊ वापस उस छोटे शहर की गोद में फिर से वही खुलापन , वही सरलता छोटी छोटी बातों पर खुश हो जाना छोटी बात पर उदास हो जाना पड़ोस के सुख दुःख में साथ निभाना पर अफ़सोस अब बहुत ही मुश्किल है वापस जा पाना।
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’