सुनो, साँझ के दस्तक देते ही हर रोज़ मेरी खातिर जो तोड़ लाते हो वक़्त की सुनहरी लड़ियाँ सहेजती जाती हूँ उन्हें मैं बड़े ही जतन से, एक बात कहूँ- मेरी साँसों का साथ निभाने के लिए ये खजाना पर्याप्त है! © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’