या दें क्या हैं ? एक आदत जो प्राथमिकताओं के अनुसार सिमट जाती हैं किसी दिवार के कोने में दफ़्न हो जाती हैं डायरी के पन्नों में कहीं या फिर कैद हो जाती है किसी मेज की दराज में गुज़रते वक़्त के साथ ही चढ़ जाती हैं उस पर समय की परतें और जब ये परतें उतरती हैं तो यादें बन जाती है सैंकड़ों चीटियाँ जो रक्त के साथ धमनियों से होती हुई पहुँच जाती है मस्तिष्क में और उन्हें तब तक नोचती हैं जब तक असहनीय दर्द हर सोच को शिथिल ना कर दे यादें बन जाती हैं ह्रदय की सुषुप्त ज्वालामुखी जो सुलगता रहता है और एक दिन फूट पड़ता है लावा बन आँखों से यादें ही तो हैं! © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’