कभी पतझड़,कभी सावन, कभी सहरा, तो कभी चमन, क़िस्सा-ए-ज़ीस्त भटकन के सिवा और कुछ भी तो नहीं। © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’