बारिश की बूंदें अच्छी लगती हैं . पता नहीं क्यों... बचपन से ही मुझे बारिश में भीगना बेहद पसंद है. ऐसा लगता है जैसे सारी खुशियाँ मिल गयी , एक संतोष.... सुकून सा महसूस होता है. बचपन की बात है मैं और मेरा छोटा भाई अपने कमरे में बालकोनी के नजदीक सोये हुए थे... उस रात खूब बारिश हुई थी ओले भी पड़े थे . हमारी मच्छरदानी पर ढेर सारे ओले आकर गिर रहे थे और हम आधी रात को जाग कर उन ओलों को चुनकर खा रहे थे. सुबह उठे और छत पर गए . सबकुछ धुला धुला लग रहा था . वहीं छत के एक कोने में ढेर लगा था.... ओले सिर्फ ओले . हम ने उन्हें बोतलों में डालना शुरू किया... और वे पिघलने लगे . हमें उनका पिघलना पसंद नहीं आ रहा था , पर वे पिघल रहे थे. ऐसी पता नहीं कितनी यादें हैं . बरसात से जुडी.... जिन्हें मैं अक्सर याद करती हूँ. कभी कभी दिल्ली में वैसी बरसात को बेहद 'मिस' करती हूँ. यहाँ तो काले बादल आते हैं चले जाते है. कभी बारिश हुई तो वो भी दो मिनट के लिए . आरा में तो जब बारिश होती थी तभी मैं बाहर घुमने का प्लान बनाती थी. क्योंकि बरसात में धुलने के बाद प्रकृति खुबसूरत लगने लगती है. © 2008-09 सर्व
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’