सुनो, (गिन्नि, निधि, श्वेता, भोली, सोनल, शिल्पी) च लो एक बार फिर अपना बचपन जी जाएँ गलती कि सज़ा मिलने पर एक साथ सभी खड़े हो जाएँ उत्तर नही आने पर एक दुसरे को नकल करवाये इन्दुबाला जीजी कि कक्षा में सब सो जाएँ लमहर सहरिया पर पाँव थिरकाये विज्ञान मेला में ऊधम मचाये मोहन भइया और बोन्नी संग खूब सिटी बजाये लड़का हो या लड़की डिक्की से ये पूछ कर आयें ट्रेन में खिड़की के पास बैठने के लिए आपस में लड़ जाएँ एक दूसरे से फ़ोन पर घंटों बतियाएँ बीना बात एक दूसरे के घर जाएँ और, ढेर सारे पत्र मित्र बनाएँ चलो, एक बार फिर अपना बचपन जी जाएँ © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’