दिनांक : १६.०७.०९ स्थान : जी बी रोड समय : शाम के तीन बजे मैं अपनी टीम के साथ पहुँची । पहले से एक स्वयंसेवी संस्था से बातें हो चुकी थी जिसने उन्हें शूट के लिए तैयार कर लिया था, हालाँकि उन्होने हमसे कैमरा छिपा लेने के लिए कहा था और हमने उनकी बात मान ली थी। गाड़ी हमने वहीं पुलिस चौकी के पास पार्क कर दी और फिर हम चल पड़े कोठा नम्बर पचास में। सीढियों पर एकदम अँधेरा और हम चले जा रहे थे। हर मंज़िल पर महिलाएं भरी पड़ी थी वो भी अजीब से मेकअप और कपडों में सजी - धजी, अब तक जैसा फिल्मों में जैसा देखती आई थी उससे एकदम इतर…बिना किसी चकाचौंध के.… हर तरफ अन्धेरा और बेहद संकरी सी सीढ़ियां। हर मंज़िल से अजीब सी बदबू आ रही थी। मन में थोडी घबराहट थी ... थोड़ा डर ... पर एक आत्मविश्वास। जाने कितने मंजिल पार कर हमलोग सबसे ऊपर वाले मंजिल पर पहुचे। वहां भी कमोबेश वही स्थिति थी। कमरे में सीलन ...बदबू... अँधेरा और ढेर सारी महिलाएं । लेकिन उनसब में एक सामंजस्य था, उनमें इतनी एकता थी कि अगर उनसे बातें नही होतीं तो मुझे वे सभी एक ही परिवार की लगती। एक साथ हँसना, बोलना , खाना , रहना .... उन्हें देखकर ऐसा नही
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’