लक्ष्मीनगर से संसद तक आना और वह भी दफ्तर वाले समय यानी सुबह 9 बजे से 11 बजे के बीच, कोई आसान काम नही है । ट्रैफिक की बाढ़ होती है... ऐसा लगता है जाने कहाँ बहा ले जायेगी ये भीड़ । उस समय कोई भी निकलना नही चाहता, यहाँ तक की ऑटो वाले भी ऑफिस का नाम लेने पर कन्नी काटने लगते हैं। शुक्रवार को मैं दफ्तर जा रही थी।आई टी ओ पर ट्रैफिक करीब पन्द्रह मिनट से रुकी हुई थी । ऐसे बोरियत भरे समय में ध्यान इधर-उधर भटकता रहता है। मैं भी सामने खड़ी हर गाड़ी को देख रही थी उस पर लिखे कैप्शंस को पढ़ रही थी। एक पंक्ति ने मेरा ध्यान खींचा। मेरे अन्दर उस गाड़ी के मालिक को देखने की इच्छा हुई। पंक्ति अंग्रेजी में लिखी गयी थी - "वेल बिहेव्ड वीमेन रेयरली मेक हिस्ट्री". पता नहीं क्यों मैं उस पंक्ति को पढ़ने के बाद रास्ते भर उस पर सोंचती रही। क्या जो लिखा है वाकई वह सच है... सही है! मुझे लगा कि शायद सही ही है। घर से बाहर निकलने के बाद एक लड़की को हर काम के लिए संघर्ष करना पड़ता है... लड़ना पड़ता है। अगर वह किसी से भी अच्छे से बात करे तो सामने वाला उसे कमज़ोर समझ या तो उसका फायदा उठाने की कोशिश करत
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’