रकसां में डूबी, बादलों से उतरी थी, नन्ही सतरंगी परियां - मेरे घर की दहलीज़ पे नाचती रही थी देर तक फिर एक - एक कर समा गई मेरी रूह में - बारिश की बूंदों को, नाचते हुए, देखा है कभी ? © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’