"जीवन में एक सितारा था माना वह बेहद प्यारा था वह डूब गया तो डूब गया अम्बर के आनन को देखो कितने इसके तारे टूटे कितने इसके प्यारे छूटे जो छूट गए फिर कहाँ मिले पर बोलो टूटे तारों पर कब अम्बर शोक मनाता है जो बीत गई सो बात गई " शायद आठवीं या नौवीं कक्षा में थी जब ये कविता पढ़ी थी... आज भी इसकी पंक्तियाँ ज़ेहन में वैसे ही हैं। उससे भी छोटी कक्षा में थी तब पढ़ी थी - "आ रही रवि की सवारी। नव-किरण का रथ सजा है, कलि-कुसुम से पथ सजा है, बादलों-से अनुचरों ने स्वर्ण की पोशाक धारी। आ रही रवि की सवारी।" बच्चन जी की ऐसी न जाने कितनी कविताएँ हैं जो छात्र जीवन में कंठस्थ हुआ करती थीं। संभव है इसका कारण कविताओं की ध्वनि-लय और शब्द रहे हों जिन्हें कंठस्थ करना आसान हो। नौकरी के दौरान बच्चन जी की आत्मकथा का दो भाग पढ़ने को मिला और उनके मोहपाश में बंधती चली गयी। उसी दौरान 'कोयल, कैक्टस और कवि' कविता पढ़ने का मौका मिला। उस कविता में कैक्टस के उद्गार - "धैर्य से सुन बात मेरी कैक्टस ने कहा धीमे से, किसी विवशता से खिलता हूँ,
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’