सभी भाग रहे हैं कोई मेट्रो के लिए भाग रहा है, कोई मेट्रो में सीट पाने के लिए भाग रहा है... कोई मेट्रो बदलने के लिए भाग रहा है... सभी भाग रहे हैं. कोई बस के लिए, तो कोई ऑटो के लिए तो कोई रिक्शा के लिए, भाग सभी रहे है. हर तरफ भागम भाग ... ऐसा लगता है की सबके अन्दर एक डर है की कही उन्होंने भागना बंद किया तो वे पिछड़ जायेंगे. मै भी उन में से ही एक हूँ... मै भी भाग रही हूँ... ये बात और है की मै रूकना चाहती हूँ... थम जाना चाहती हूँ , लेकिन ये भी एक कटु सच है की अब रूकना संभव नहीं, बस भागते जाना है. अब तो बस इस भागम भाग में ही खुशी ढूँढनी है
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’