उदास शामें, यादों के आबशार, बेकल आँखें हर आहट पर तेरे आने की मुन्तज़िर मेरी आँखें शामें-हिज़्र ऐसी नाशाद होंगी सोचा न था। © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’