यूँ तो चमकता माहताब था हमसफ़र उसका, फिर क्यों सिमट आयी आफताब की बाहों में रात मुद्दतें बीत गयी इश्क़ ज़हीन ना हुआ। © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’