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Showing posts from April 16, 2017

मनुष्य एक सामाजिक नहीं सामूहिक प्राणी है!

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी नहीं बल्कि मनुष्य एक सामूहिक प्राणी है। पहले जाति विशेष का समूह, फिर धर्म विशेष, फिर गाँव विशेष, शहर विशेष, क्षेत्र विशेष, राज्य विशेष, भाषा विशेष, देश विशेष, विचारधारा विशेष- सुविधानुसार हम सब अपने-अपने समूह में शामिल रहते हैं। इतना ही नहीं ये सामूहिक विभेद का काम विद्यालय और महाविद्यालय स्तर पर भी चलता रहता है। बंटवारे का बीज तो हम सब बचपन से ही अपने मन में बोये रहते हैं। समय-समय पर कोई महापुरुष या स्त्री इसमें खाद पानी दे जाते हैं, और ये फलने फूलने लगते हैं। फेसबुक और व्हाट्सएप्प जैसे सोशल नेटवर्किंग प्लेटफार्म भी समूह बनाने की सहूलियतें दे रहा है। यहाँ भी लोग सामूहिक बँटवारे को बड़े प्यार से अपना रहे। अगर आपको सामूहिक बँटवारा पसंद नहीं तो भी लोग आपको बाँट कर ही रहेंगे। कोई आपको जातिगत समूह में शामिल करेगा तो कोई शहर, राज्य, पेशेगत समूह में शामिल करेगा, लेकिन बँटवारा ज़रूरी है। बँटवारे के बाद शुरू होता है सामूहिक बड़ाई और बढ़ावा देने का सिलसिला। तू मेरी पीठ थपथपा मैं तेरी थपथपाऊँ, और अगर किसी और समूह वाले ने किसी दूसरे समूह के लोगों पर टिप्पणी कर दी तो