का मथS तार... क्षीर समुद्र...का खोजS तार...अनंत भगवान... मिललें... ना। यूँ तो हमारे घर में पूजा पाठ ज़्यादा नहीं हुआ करता था। 'बाबा-अम्मा' दयालबाग से जुड़े थे...लेकिन कुछ पूजा हमारे घर में ज़रूर होती, उनमें से एक अनंत चतुर्दशी की पूजा भी थी। सुबह-सुबह बालकनी धो दी जाती। वहीँ पूजा का सारा इंतज़ाम होता। हमें जो इंतज़ार रहता वो था 'चनामृत' का और साथ ही 'क्षीर समुद्र' को मथने का। 'अनंत पूजा' और 'कलम दवात' की पूजा का चनामृत बाकि पूजा के चनामृतों की तुलना में थोड़ा ज़्यादा स्वादिष्ट होता है 😉 । (बचपन से जीभचटोर वाली प्रकृति है) खीरा से दूध और पानी के 'क्षीर समुद्र' को मथा जाता, जिसमें से सोने के अनन्त भगवान निकलते, जो पहले ही रख दिया जाता। मोहल्ले भर से लोग हमारे घर पर अनंत पूजा के लिए आते। पूजा के बाद रंग बिरंगा अनन्त हमारे बाजुओं में बांधा जाता। वो अनंत मुझे बहुत सुन्दर लगता था। पूजा के बाद सिवई, दोस्ती पराठा और अच्छी सी सब्जी का भोग लगता, हालांकि पण्डी जी नमक नहीं खाते, लेकिन घर के सदस्यों को नमक खाने पर कोई पाबंदी नहीं थी। अम्मा हमें बतात
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’