नीले आकाश में यादों का पंछी उड़ता चला जाता है और याद आता है मेरा स्कूल और नीम का वो पेड ईमली के पत्ते और बेल से लदे पेड़ फूलों की क्यारी मिटटी कि गलियारी टीचर कि डांट आलू का चाट होम्सईन्स की घंटी में हमारी नौटंकी डांस के पीरियड मे स्कूल से भागने की टंटी मुझको तो याद है प्यार की वो रेल पेल क्षण में झगड़ना और क्षण में मेल । आम के टीकोले हम थे कितने भोले बिल्कुल मंझोले । बादाम का वो पेड छत का खपरैल टबिल टेनिस का खेल बिर्जा जीजी का जेल । टिफिन मे कबड्डी अचार की छीना झपटी आपस मे लड़ना फिर सबको मनाना रोना और रुलाना फिर हँसना हँसाना क्या भूल सकना आसान है बिता वो जमाना ?
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’