फलक पर चाँद -चांदनी गुनगुना रहे थे सितारे कहकहे लगा रहे थे और, रात सिंड्रेला की तरह अपनी बेबसी पर रो रही थी। उस रोज़, रात के अश्कों को समेट लिया लॉन में उग आई नन्ही सी दूब ने भोर की पहली किरण के साथ ही आँखों में उतर आया इंद्रधनुष और खिलखिलाती हुई अलमस्त सुबह ने अंगड़ाई ली। © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’