प्रख्यात साहित्यकार विष्णु प्रभाकर जी अब हमारे बीच नहीं रहे... दुखद समाचार । 12 दिसम्बर 2008 को मैं अपनी टीम के साथ उनके घर पर थी ... एक नए कार्यक्रम की शुरुआत के लिए उनका प्रोफाइल शूट करना था। प्रभाकर जी बिस्तर पर लेटे हुए थे। उनसे जब बातें शुरू हुई तो एहसास हुआ कि उन्हें चल फ़िर नही पाने का कितना दुःख है। उन्होंने लेटे हुए ही हमसे बातें की। उन्होंने कहा - "अब मैं ज़्यादा बोलने की स्थिति में तो हूँ नही, लेकिन आप लोग जो पूछेंगे मैं बताऊंगा ..... ।" जब उनसे उनकी श्रेष्ठ कृतियों में से एक 'आवारा मसीहा' के बारे में पूछा गया तो पहले तो वह उसे याद नहीं कर पाये, फ़िर जब उन्हें याद दिलाया गया तो वे बोल पड़े - '"शरत चंद्र को मैंने बहुत करीब से जानने की कोशिश की तो पाया कि उन्हें हमेशा ग़लत समझा गया था।" मै कभी नही सोची थी कि कभी मैं उनसे मिल सकूंगी, बातें कर सकूंगी। वह दिन मेरी जिंदगी के कुछ अविस्मरणीय पलों में से एक था। प्रभाकर जी इससे भी दुखी थे कि जब से वे बिस्तर पर पड़े हैं उनसे मुलाक़ात करने वालों की संख्या कम हो गई है। हमेशा व्यस्त रहने वाले विष्णु जी जब अस
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’