इन दिनों आईडिया का एक विज्ञापन टीवी चैनेल्स पर छाया हुआ है। विज्ञापन में एक लड़की होती है जिसे बस स्टैंड पर एक युवक छेड़ रहा होता है। वो अपने मोबाइल फ़ोन से सबसे सुझाव मांगती है... दो ऑप्शन्स होते हैं ... गाँधी या कमांडो ? जनता का मेस्सज आता है, जिनमे निन्यानवें प्रतिशत लोगों का मत होता है कमांडो सिर्फ़ एक प्रतिशत का ही वोट गाँधी को जाता है। उसके बाद लड़की एक किक्क मारती है और इव टीसर चारों खाने चित्त।
विज्ञापन देखकर एक सवाल मेरे मन में उठा की क्या इस तरह से महात्मा गांधी की तुलना करना और फ़िर उन्हें हारते हुए दिखाना उचित है? मैं यही सवाल आप सभी से करती हूँ ... क्या ये उचित है?
जिसने भी इस विज्ञापन की स्क्रिप्टिंग की हो अगर वो अपनी स्क्रिप्ट में थोड़ा सा फेर बदल कर लिया होता और गाँधी की जगह गांधीगिरी कर देता तो शायद उसका अर्थ थोड़ा अलग हो जाता...या फ़िर ये हो सकता है की मैं इसे लेकर कुछ ज़्यादा सोंच गई, पर ये सच है की हाँ मुझे ये अच्छा नहीं लगा।
https:// epaper.bhaskar.com/ patna-city/384/01102018/ bihar/1/ मु झसे अगर यह पूछा जाए कि दिनकर की कौन सी कृति ज़्यादा पसंद है तो मैं उर्वशी ही कहूँ गी। हुंकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी जैसी कृति को शब्दबद्ध करने वाले रचनाकार द्वारा उर्वशी जैसी कोमल भावों वाली रचना करना, उन्हें बेहद ख़ास बनाती है। ये कहानी पुरुरवा और उर्वशी की है। जिसे दिनकर ने काव्य नाटक का रूप दिया है, मेरी नज़र में वह उनकी अद्भुत कृति है, जिसमें उन्होंने प्रेम, काम, अध्यात्म जैसे विषय पर अपनी लेखनी चलाई और वीर रस से इतर श्रृंगारिकता, करुणा को केंद्र में रख कर लिखा। इस काव्य नाटक में कई जगह वह प्रेम को अलग तरीके से परिभाषित भी करने की कोशिश करते हैं जैसे वह लिखते हैं - "प्रथम प्रेम जितना पवित्र हो, पर , केवल आधा है; मन हो एक, किन्तु, इस लय से तन को क्या मिलता है? केवल अंतर्दाह, मात्र वेदना अतृप्ति, ललक की ; दो निधि अंतःक्षुब्ध, किन्तु, संत्रस्त सदा इस भय से , बाँध तोड़ मिलते ही व्रत की विभा चली जाएगी; अच्छा है, मन जले, किन्तु, तन पर तो दाग़ नहीं है।" उर्वशी और पुरुरवा की कथा का सब
Comments
'धन पिशाचों' का एक ही लक्ष्य है - पैसा। सो, गांधी उनके लिए 'विचार' नहीं, 'सेलेबल आईटम' है।
आप बिलकुल ठीक कह रही हैं।
Aapka sujhav achchha hai. par nishchint rahiye is vigyapan se Gandhi ji par koi fark nahiN padne wala. jab hatyaare ki goli unka kuchh nahin bigaag saki to in tuchhe-muchhe vigyapanoN se kya hona hai.!
मीत