Skip to main content

भीख मांगने की मजबूरी


दिल्ली में जहाँ देखो एक चीज़ बड़ी ही कोमोन नज़र आती है वो है हर गली, नुक्कड़, चौक-चौराहों, रेड लाइट्स पर भीख मांगने वालों की अच्छी खासी तादाद। अगर मंगलवार हो तो हनुमान मन्दिर, गुरुवार हो तो साईं मन्दिर, शुक्रवार हो तो मस्जिद और शनिवार को शनि मन्दिर के आस पास भीख मांगने वालों से मुलाक़ात हो ही जाती है। कहीं शारीरिक विकलांगता भीख मांगने पर मजबूर करती है तो कहीं अच्छा भला आदमी भीख के लिए ख़ुद के विकलांग होने का ढोंग रचता है। ये मैं यू ही नहीं लिख रही हूँ... मैंने अपनी आंखों से देखा है।

अक्सर ऑफिस जाने के लिए मुझे जनपथ से होकर जाना पड़ता है। वहां एक हाथ वाली , कद काठी से अच्छी भली लड़की भीख मांगती अक्सर नज़र आ जाएगी। बहुत सारे लोगों ने अक्सर उसपर तरस खाकर उसे पैसे भी दिए होंगे, क्योंकि एक बार ये गलती मैं भी कर चुकी हूँ। हाल ही में मैं बस से उस रास्ते से गुज़र रही थी तो देखा उसने अपने गंदे और ढीले से समीज में अपने दूसरे हाथ को छिपाए लोगों से एक हाथ से भीख मांग रही थी। जैसे ही लाल बत्ती खुली वो फ़िर से अपने दोस्तों के साथ मिलकर दोनों हाथों से समोसे खाने लगी। मुझे ये देखकर बेहद अफ़सोस हुआ, साथ ही ऐसे लोगों को देखकर मन क्षुब्ध हो गया। सोंचने लगी उस लड़की की कमअक्ली पर, साथ ही समाज की इस व्यवस्था पर... जहाँ एक अच्छे भले आदमी को विकलांग बनने की एक्टिंग करनी पड़ती है, और वो भी पुरे समाज के सामने।

Comments

222222222222 said…
पिछले दिनों इंडिया न्यूज ने एक अंक ही इस समस्या पर निकाला था। देखें।
Priyambara said…
waise Lok Sabha TV par aane waale programme "Asmita" ka bhi ek episode isi samasya par hai.
lumarshahabadi said…
very nice senments and nice vision

Popular posts from this blog

हुंकार से उर्वशी तक...(लेख )

https:// epaper.bhaskar.com/ patna-city/384/01102018/ bihar/1/ मु झसे अगर यह पूछा जाए कि दिनकर की कौन सी कृति ज़्यादा पसंद है तो मैं उर्वशी ही कहूँ गी। हुंकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी जैसी कृति को शब्दबद्ध करने वाले रचनाकार द्वारा उर्वशी जैसी कोमल भावों वाली रचना करना, उन्हें बेहद ख़ास बनाती है। ये कहानी पुरुरवा और उर्वशी की है। जिसे दिनकर ने काव्य नाटक का रूप दिया है, मेरी नज़र में वह उनकी अद्भुत कृति है, जिसमें उन्होंने प्रेम, काम, अध्यात्म जैसे विषय पर अपनी लेखनी चलाई और वीर रस से इतर श्रृंगारिकता, करुणा को केंद्र में रख कर लिखा। इस काव्य नाटक में कई जगह वह प्रेम को अलग तरीके से परिभाषित भी करने की कोशिश करते हैं जैसे वह लिखते हैं - "प्रथम प्रेम जितना पवित्र हो, पर , केवल आधा है; मन हो एक, किन्तु, इस लय से तन को क्या मिलता है? केवल अंतर्दाह, मात्र वेदना अतृप्ति, ललक की ; दो निधि अंतःक्षुब्ध, किन्तु, संत्रस्त सदा इस भय से , बाँध तोड़ मिलते ही व्रत की विभा चली जाएगी; अच्छा है, मन जले, किन्तु, तन पर तो दाग़ नहीं है।" उर्वशी और पुरुरवा की कथा का सब...

ये हौसला…

उ स दिन गार्गी उदास सी घर के कामों में उलझी थी।  उसकी उदासी को समझ पाना बहुत ही आसान था, क्योंकि जब वो खुश - प्रफुल्लित रहती है, या तो कोई प्यारा सा बांग्ला गीत गुनगुनाती रहेगी या फिर यहां की बातें - वहाँ की बातें बांग्ला मिक्स टूटी फूटी हिन्दी में बताती रहेगी, जिसमें अक्सर लिंग भेद की त्रुटियाँ भी होती थीं, हालांकि करीब  चार - पांच  सालों के हमारे साथ ने उसकी हिंदी में काफी सुधार ला दिया था। अपने नाम के बिलकुल उलट - निरक्षर, अव्वल दर्जे की नासमझ, जिसे कोई भी चकमा दे जाता, रोज़ बेवक़ूफ़ बनती। मज़ाक  करते हुए मै अक्सर उससे पूछा करती कि आखिर तुम्हारा नाम गार्गी किसने रख दिया, पता है गार्गी कितनी पढ़ी लिखी विदुषी महिला का नाम था, वो मेरी बातें सुनती और हंसती…हाँ लेकिन वो बंगाली खूबसूरती से भरी पूरी थी, दुबली पतली सी…बड़ी बड़ी आँखों वाली । अक्सर अपनी बातें मुझसे साझा करती थी -  चाहे तकलीफ - परेशानियां हो या फिर कोई खुशी की बात, यहां तक कि अगर किसी ने उसके मेहनताने की रकम भी बढ़ाई तो भी बेहद खुश होकर बताएगी। कभी किसी की बुराई करते करते नाराज़ हो जाएगी तो ...

चिड़ियाँ

शाम हो चली थी।  सारे बच्चे छत पर उधम मचा रहे थे।  उनकी धमा चौकड़ी की आवाज़ से बिट्टी का  पढ़ाई से ध्यान बार बार उचट रहा था, लेकिन फिर पापा की घूरती आँखें, उसके ध्यान को वापिस ७ के पहाड़ा पर टिका दे रही थी । अब वो ज़ोर ज़ोर से पहाड़ा याद कर रही थी "सात एकम सात, सात दूनी चाॉदह"  तभी आवाज़ आई "हमार चिरैयाँ बोलेला बउवा के मनवा डोलेला" बिट्टी अपने पिता की ओर देखी, उनका ध्यान कहीं और था।  वह तुरंत खिड़की पर पहुँच कर नीचे झाँकने लगी। मोम से बनी रंग बिरंगी छोटी छोटी चिड़ियाँ ।  उसकी इच्छा हुई की बस अभी सब में प्राण आ जाए और सब सचमुच की चिड़ियाँ बन जाए ।  वो मोम की चिड़ियों की सुंदरता में डूबी हुई थी ।  तभी नीचे से चिड़िया वाले ने पूछा - "का बबी चिरैयाँ चाहीं का, आठ आना में एगो। " बिट्टी ने ना में सर हिलाया ।  फेरी वाले ने पुचकारते हुए कहा " जाए द आठ आना में तू दुगो ले लिहा।" बिट्टी फिर ना में सर हिला कर वापिस पिता के पास ...