एक समय था जब गाँधी जी के बंदरों की कहानी जूनियर स्कूल की किताबों में हुआ करती थी। बचपन में ही गाँधी जी के बंदरों का महत्व बताया जाता था। एक बन्दर जो अपनी आँखें बंद किया है उसका अर्थ है बुरा मत देखो , दूसरा जो मुंह बंद किया है उसका मतलब है बुरा मत बोलो और तीसरा जो कान बंद किया है उसका अर्थ है बुरा मत सुनों। वक्त बदला ... समाज बदला और आज के सन्दर्भ में उसका अर्थ भी बदल गया है। आज पहले बन्दर का अर्थ है कुछ भी ग़लत होता रहे आँखें बंद रखो, दूसरे का मतलब है चाहे तुम जानते हो की ये सही है और ये ग़लत दूसरों को कभी सलाह मत दो, और जिसने कान बंद किया है उसका मतलब है तुम्हारे सामने कुछ भी ग़लत हो अपने कान बंद रखो ताकि दूसरों की परेशानिओं से तुम्हे परेशानी ना हो। समय के साथ सीख भी बदल गई।
लेकिन अफ़सोस तब हुआ जब मेरे एक बहुत ही पसंदीदा ब्लॉग में महात्मा गाँधी के चौथे बन्दर की कहानी को छापा गया। ऐसा लगा जैसे गाँधी जी की शिक्षा या फ़िर उनकी बातों का मजाक बनाया जा रहा है। मुझे काफ़ी अफ़सोस हुआ और शायद हर उस बन्दे को अफ़सोस हो जो महात्मा गाँधी का सम्मान करता हो।
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