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किस ओर जा रहा समाज ?

यूँ ही समाचारों को स्क्रॉल करते हुए इस खबर पर नजर चली गयी.इसे पढने से खुद को रोक नहीं पायी.आप किसी पर भरोसा कैसे करें? इसे पढ़ते हुए रोंगटे खड़े हो गए, मतलब क्रूरता की पराकाष्ठा है. कई सवाल भी मन में उठे मसलन ऐसा करने वाले कि मानसिक स्थिति कैसी रही होगी? क्या कोई सामान्य इंसान ऐसा कर सकता है? मामला बच्चा चुराने का है किन्तु बच्चा चोरी की यह घटना बिलकुल अलग ही स्तर की है. घटना ब्राज़ील की है. बच्चा चुराने वाली एक महिला है, किन्तु चुराने का तरीका वीभत्स. उस महिला ने अपनी बेस्ट फ्रेंड की हत्या कर उसके कोख से नौ माह का शिशु निकाल लिया. इसके पहले उस महिला ने खूब रिसर्च किया कि डेड बॉडी से शिशु को कैसे निकाला जा सकता है. इस पूरी घटना और हत्या का खुलासा तब हुआ जब महिला उस बच्चे को लेकर हॉस्पिटल पहुंची. हॉस्पिटल स्टाफ को ये मामला संदिग्ध लगा और उसने पुलिस को खबर किया. पुलिस कस्टडी में महिला ने सच उगल दिया. इस घटना का ज़िक्र करने का सीधा सा मतलब है कि हम किस ओर जा रहे हैं. आप जिसके साथ दिन-रात रहते हैं वह आपके साथ क्या कर सकता है ये घटना एक जीता जागता सबूत है. © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

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हुंकार से उर्वशी तक...(लेख )

https:// epaper.bhaskar.com/ patna-city/384/01102018/ bihar/1/ मु झसे अगर यह पूछा जाए कि दिनकर की कौन सी कृति ज़्यादा पसंद है तो मैं उर्वशी ही कहूँ गी। हुंकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी जैसी कृति को शब्दबद्ध करने वाले रचनाकार द्वारा उर्वशी जैसी कोमल भावों वाली रचना करना, उन्हें बेहद ख़ास बनाती है। ये कहानी पुरुरवा और उर्वशी की है। जिसे दिनकर ने काव्य नाटक का रूप दिया है, मेरी नज़र में वह उनकी अद्भुत कृति है, जिसमें उन्होंने प्रेम, काम, अध्यात्म जैसे विषय पर अपनी लेखनी चलाई और वीर रस से इतर श्रृंगारिकता, करुणा को केंद्र में रख कर लिखा। इस काव्य नाटक में कई जगह वह प्रेम को अलग तरीके से परिभाषित भी करने की कोशिश करते हैं जैसे वह लिखते हैं - "प्रथम प्रेम जितना पवित्र हो, पर , केवल आधा है; मन हो एक, किन्तु, इस लय से तन को क्या मिलता है? केवल अंतर्दाह, मात्र वेदना अतृप्ति, ललक की ; दो निधि अंतःक्षुब्ध, किन्तु, संत्रस्त सदा इस भय से , बाँध तोड़ मिलते ही व्रत की विभा चली जाएगी; अच्छा है, मन जले, किन्तु, तन पर तो दाग़ नहीं है।" उर्वशी और पुरुरवा की कथा का सब...

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