उस रात
जब चाँद
भटक रहा था
बादलों में कहीं
-
अल्हड हवा
रूमानियत के गीत
गुनगुना रही थी
-
फ़िज़ा में घुल
रही थी
इश्क़ की भीनी
खुशबू -
उस रात चांदनी पहनकर
सितारों को दामन
में भरकर
सारे रस्मोरिवाज को
छोड़कर
स्याह रातों को
रोशन करती
अपने दायरे को
तोड़ती
चली तो आयी
थी-
तुम्हारी वीरान सुबह
में
रंग भरने
ना सिर्फ एक
पल के
लिए
वरन् उम्र भर
के लिए
तुम्ही बता दो
मेरे हमराज
अपने तसव्वुर के
आशियाँ में
अब तन्हा
लौटूं कैसे ??
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