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पापा आपकी बहुत याद आती है.


ई माह कि शुरुआत हो गयी. ना चाहते हुए भी कुछ यादें कभी पीछा नही छोड़तीं. 2012 का यही तो महीना था जब अन्तिम बार पापा को सही से बैठते हुए और चलते हुए देखे थे. क़रीब बीस दिनों कि छुट्टी लेकर घर गए थे... पापा के हर डाइट कि ज़िम्मेदारी मेरी थी, समय पर नही लेने पर गुस्साते भी थे. बीस दिन देखते देखते बीत गए और फिर आ गया मेरे दिल्ली आने का दिन.... पहली बार पापा को इतना भावुक देखे... उन्होंने कहा - "मेरी बेटी आज जा रही है हम कुछ नही खाएँगे."  हम अपने हाथों से खिचड़ी बनाये थे,  पापा से कहे मेरा मन रखने के लिए खा लीजिए... मेरी जिद पर वो दो चम्मच खा लिए. पहली बार पापा को इतना भावुक देख हमे अच्छा नही लग रहा था, लेकिन हमे क्या पता था कि वास्तव में उन्हें भी ये एहसास था कि अब उनके पास ज़्यादा दिन नही है.


...र फिर अगस्त महीने में जब घर गए.... पापा कि स्थिति देख कर बहुत घबराहट हुयी साथ ही अफसोस भी हुआ, तब तो वो उस स्थिति में भी नही थे जो मेरी जिद पर दो चम्मच पी भी सके.      


मय बीत जाता है... पर यादें कभी नही मिटती. उनके जाने के बाद समझ आया कि उस दिन पापा इतने भावुक क्यों हुए थे. पापा आपकी बहुत याद आती है.



© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

Comments

Unknown said…
though i m sitting so far yet i too have some memories related to this

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