आँखों की पुतली में हरकत
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एक आस
शायद अभी खुलेंगी आँखें
और हम पुनः जुट जाएंगे
इशारों को समझने में
लेकिन
पलकें मूँद गयी
स्थिर हो गयी पुतलियाँ
धडकनें थम गयी
चेहरे पर असीम शान्ति
हथेलियों की गर्माहट घटने लगी
क्षण भर में
बर्फ हो गयी हथेलियाँ
हर तरफ सिसकियाँ
लेकिन मैं गुम थी
विचारों के
उथल पुथल में -
मृत्यु इतनी शीतल है
फिर
गर्म - खारे पानी का ये सैलाब क्यों
जब मृत्यु इतनी शांत है
फिर क्यों जूझना
भावनाओं के तूफ़ान से
मृत्यु तो सबसे बड़ा सच है
फिर झूठी ज़िन्दगी से मोह क्यों ??
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