सभी भाग रहे हैं कोई मेट्रो के लिए भाग रहा है, कोई मेट्रो में सीट पाने के लिए भाग रहा है... कोई मेट्रो बदलने के लिए भाग रहा है... सभी भाग रहे हैं. कोई बस के लिए, तो कोई ऑटो के लिए तो कोई रिक्शा के लिए, भाग सभी रहे है. हर तरफ भागम भाग ... ऐसा लगता है की सबके अन्दर एक डर है की कही उन्होंने भागना बंद किया तो वे पिछड़ जायेंगे. मै भी उन में से ही एक हूँ... मै भी भाग रही हूँ... ये बात और है की मै रूकना चाहती हूँ... थम जाना चाहती हूँ , लेकिन ये भी एक कटु सच है की अब रूकना संभव नहीं, बस भागते जाना है. अब तो बस इस भागम भाग में ही खुशी ढूँढनी है
https:// epaper.bhaskar.com/ patna-city/384/01102018/ bihar/1/ मु झसे अगर यह पूछा जाए कि दिनकर की कौन सी कृति ज़्यादा पसंद है तो मैं उर्वशी ही कहूँ गी। हुंकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी जैसी कृति को शब्दबद्ध करने वाले रचनाकार द्वारा उर्वशी जैसी कोमल भावों वाली रचना करना, उन्हें बेहद ख़ास बनाती है। ये कहानी पुरुरवा और उर्वशी की है। जिसे दिनकर ने काव्य नाटक का रूप दिया है, मेरी नज़र में वह उनकी अद्भुत कृति है, जिसमें उन्होंने प्रेम, काम, अध्यात्म जैसे विषय पर अपनी लेखनी चलाई और वीर रस से इतर श्रृंगारिकता, करुणा को केंद्र में रख कर लिखा। इस काव्य नाटक में कई जगह वह प्रेम को अलग तरीके से परिभाषित भी करने की कोशिश करते हैं जैसे वह लिखते हैं - "प्रथम प्रेम जितना पवित्र हो, पर , केवल आधा है; मन हो एक, किन्तु, इस लय से तन को क्या मिलता है? केवल अंतर्दाह, मात्र वेदना अतृप्ति, ललक की ; दो निधि अंतःक्षुब्ध, किन्तु, संत्रस्त सदा इस भय से , बाँध तोड़ मिलते ही व्रत की विभा चली जाएगी; अच्छा है, मन जले, किन्तु, तन पर तो दाग़ नहीं है।" उर्वशी और पुरुरवा की कथा का सब
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