दिल्ली का घर... बिल्कुल छोटा सा... तीन कमरे का फ्लैट । कहते हैं की दिल्ली के फ्लेट्स में अगर सूरज की रोशनी पहुँच जाए तो ये बड़े सौभाग्य की बात है। कुछ ऐसा ही सौभाग्य हमें प्राप्त है। जी हाँ वैसे तो हम तीन कमरे और एक बड़े से हॉल वाले फ्लैट में रहते हैं ...लेकिन वास्तव में छोटे से क्षेत्र में ही ये चारो कमरे, रसोईघर सिमटा पड़ा है। बेडरूम से सटे एक छोटी सी बालकनी भी है जहाँ जाकर ये अहसास होता है की फ्लैट बनाने वाले ने कितना दिमाग लगाया होगा हर छोटे बड़े कोने का इस्तेमाल करने में। कहाँ हमारे आरा का घर जहाँ बालकनी में हमलोगों ने कितनी बार छुआ छुई खेली, यही नही मैंने तो वहां ढेर सारे गमले लगा रखे थे। गर्मी के दिनों में हम सब भाई बहन बालकनी में आराम से सकते थे इतनी जगह वहां थी। यहाँ... दिल्ली के घर में अगर तीन लोग खड़े हो जाएँ तो ऐसा लगता है की कितनी भीड़ हो गई ... अब चौथे के लिए जगह ही नही है। खैर... इन सब के बावजूद हम ख़ुद को बेहद सौभाग्यशाली मानते है क्योंकि ये घर काफ़ी खुला हुआ सा है। दिन चढ़ते ही सूरज की रोशनी से हमारी नींद खुलती है। दूसरा कमरा, वो भी बालकनी से ही सटा है, बहुत से जीवों की
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं ---- ‘नूर’