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मुंबई मेरी जान





चमचमाती रोशनी से नहाई
मुंबई की रात
और नगर की पहचान
भव्य ताज
कई ऐतिहासिक घटनाओं की गवाह

लेकिन,
बुधवार की काली रात
देखते ही देखते
छा गया तबाही का मंज़र
मुठी भर दहशतगर्दों के हाथों में थी
सैकडों लोगों की जान

ग्रेनेड के धमाकों
और गोलियों की आवाजों ने
ोडी रात की चुप्पी
देखते ही देखते आग और धुएँ में नहाई थी
मुंबई की भव्यता
देश की आर्थिक राजधानी
डूब गई अंधेरे में.

Comments

Unknown said…
good work. such things keep motivating people working for nations. it s really nice to read such article which shake one's soul to rise against terror acts.
Bandmru said…
aachchha laga! likhte rahen.

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हुंकार से उर्वशी तक...(लेख )

https:// epaper.bhaskar.com/ patna-city/384/01102018/ bihar/1/ मु झसे अगर यह पूछा जाए कि दिनकर की कौन सी कृति ज़्यादा पसंद है तो मैं उर्वशी ही कहूँ गी। हुंकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी जैसी कृति को शब्दबद्ध करने वाले रचनाकार द्वारा उर्वशी जैसी कोमल भावों वाली रचना करना, उन्हें बेहद ख़ास बनाती है। ये कहानी पुरुरवा और उर्वशी की है। जिसे दिनकर ने काव्य नाटक का रूप दिया है, मेरी नज़र में वह उनकी अद्भुत कृति है, जिसमें उन्होंने प्रेम, काम, अध्यात्म जैसे विषय पर अपनी लेखनी चलाई और वीर रस से इतर श्रृंगारिकता, करुणा को केंद्र में रख कर लिखा। इस काव्य नाटक में कई जगह वह प्रेम को अलग तरीके से परिभाषित भी करने की कोशिश करते हैं जैसे वह लिखते हैं - "प्रथम प्रेम जितना पवित्र हो, पर , केवल आधा है; मन हो एक, किन्तु, इस लय से तन को क्या मिलता है? केवल अंतर्दाह, मात्र वेदना अतृप्ति, ललक की ; दो निधि अंतःक्षुब्ध, किन्तु, संत्रस्त सदा इस भय से , बाँध तोड़ मिलते ही व्रत की विभा चली जाएगी; अच्छा है, मन जले, किन्तु, तन पर तो दाग़ नहीं है।" उर्वशी और पुरुरवा की कथा का सब

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