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गौरैया












 गौरैया
हर रोज़
तिनका चुन कर लाती है-
मेरे घर के छज्जे पर
एक घोंसला
अब तो बन चुका है
उनमें 
छोटे छोटे अंडे भी हैं 

गौरैया
दिन भर उन्हें
सेती है ,

चंद रोज़ बीते -
और ... आज 
चूजे भी निकल आए

गौरैया
अपने बच्चों के लिए
खाना लाती है,
उनकी चोंच में डालकर
फुर्र से उड़ जाती है ।

हमारा घर
चिडियों का खेल्गाह
बना
हुआ है ।

धीरे धीरे
गौरैया
बच्चों को 
उड़ना सिखाती है-
गिरते - सँभलते वे भी
उड़ना सीख लेते हैं,
और फिर  एक दिन
फुर्र...
घर का छज्जा फ़िर
वीरान  हो गया ।


Comments

mehek said…
bahut hi sundar bhavuk
Eik khoobsoorat khayaal ki kavita hai.Badhaayee...
बहुत अच्छे…लिखती रहें---
बड़ी सुंदर मनमोहक कविता लगी लिखते रहिये धन्यवाद
और एक दिन
फुर्र...
घर का छज्जा फ़िर
विरान हो जाता है।

वाह!! गहरी रचना..

***राजीव रंजन प्रसाद्
Bandmru said…
जिसने उसको उड़ना सिखाया उस को छोड़कर अपना दूसरा घर बसाया हैं न दुनिया और चिडियों में समानता ।
क्या बात हैं दीदी मन भाउक हो गया पढ़कर
Mohinder56 said…
सायद यही जीवन है.. अकेले से आरम्भ हो कर अकेलेपन पर समाप्त होता है..

सुन्दर भाव भरी रचना के लिये बधाई

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