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-साइबर ट्रैप-


“ OMG कहाँ थे यार ? ” 
“ थोड़ा बिजी था, तुम सुनाओ, एनीथिंग न्यू,? हाउ आर यू ?कैसा चल रहा है तुम्हारा काम” “K” 
“मतलब?” 
“ओके...शार्ट फॉर्म K” 
“हा हा हा, तुम और तुम्हारे शार्ट फॉर्म्स” 
“हा हा हा को तुम LOL भी लिख सकते हो,मतलब- लाफिंग आउट लाउड” 
“हाँ हाँ वही LOL” 
“ पर एक पहेली अब तक नहीं सुलझी, अब टालो नहीं बता दो” 
“KP” 
“मतलब?”
 “कौन पहेली... हा हा हा” 
“मतलब कुछ भी शॉर्ट” 
“और क्या?” 
“ओके मुझे बहस नहीं करनी। अब पहेली बुझाना बंद करो और जल्दी से ऑनलाइन वाला नाम छोड़कर अपना ‘रियल नेम’ बताओ?” 
“दि रॉकस्टार” 
 “उहुँ ये तो हो ही नहीं सकता, कुछ तो रियल बताओ, ना चेहरा दिख रहा, न नाम रियल” 
 “ हा हा हा, तुम तो बस मेरे नाम के पीछे ही पड़ गई हो! अरे बाबा ये तो बस फेसबुक के लिए है, जैसे तुम्हारा नाम ‘स्वीटी मनु’ वैसे मेरा नाम ” 
“ तो तुम्हारा असली नाम क्या है?” “असलियत फिर कभी, बाय” 
“बाय ! हमेशा ऐसे ही टाल जाते हो, कह देती हूँ अगर अगली बार तुमने अपना असली नाम नहीं बताया और अपना चेहरा नहीं दिखाया तो फिर सीधा ब्लॉक। याद रखना कोई मज़ाक नहीं” 
 “LOL” 
“मज़ाक नहीं, बिलकुल सच” 
“ चल चल देखेंगे” “ठीक है फिर तो देख ही लेना” 
हर रोज़ लड़की लड़के से उसका असली नाम और पहचान पूछती और लड़का बातों को ही बदल देता। लड़की धमकी देती और लड़का हँस कर टाल देता, दरअसल दोनों को पता था कि धमकी तो कोरी धमकी है, सच के धरातल से कोसों दूर। दोनों एक दूसरे से बात किये बगैर रह नहीं पाते थे। कंप्यूटर की भाषा में चैटिंग उनकी रोज़मर्रा के जीवनचर्या का हिस्सा थी। दोनों के बीच दोस्ती की पहल लड़के की ओर से ही हुई थी। दोनों के सौ से ज़्यादा म्यूच्यूअल फ्रेंड्स थे। लड़के ने डीपी (लड़की की प्रोफाइल फ़ोटो) देखी और बस फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी। लड़की ने भी इतने सारे म्यूच्यूअल फ्रेंड्स को देखकर रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली। बातचीत का सिलसिला चल निकला , कभी उटपटांग तो कभी गंभीर। दोनों एक ही शहर से थे तो कई कॉमन फ्रेंड्स भी निकल आए। एक दिन बातचीत करते हुए फिर लड़की लड़के की पहचान पर अटक गयी। 
 “तुमने अपने चेहरे को क्यों छिपा रखा है यार, एकदम मिस्टीरियस मैन टाइप। बिलकुल अच्छा नहीं लगता,कभी कभी बिलकुल अजनबी सा लगता है” 
“एक बात बताओ मैं भीड़ में या ऐसे सोशल साइट्स पर बिलकुल असहज महसूस करता हूँ” 
“हम्म्...क्यों? अगर ऐसा है तो सोशल साइट पर क्यों हो ?” 
“बिज़नेस की वजह से यहां होना मजबूरी है” “ओके, ठीक है पर हमलोग इतने समय से एक दूसरे से बातें कर रहे हैं। हमदोनों के बीच राज़ जैसा तो कुछ होना नहीं चाहिए। मुझे तो अपना चेहरा दिखा ही सकते हो।प्लीज।।।” 
इस बार लड़का उसके आग्रह को टाल नहीं पाया। बिना ना नुकुर के उसने अपनी फ़ोटो भेज दी। 
“ OMG इस युग में भी इतनी घनी मूँछे, यहाँ आने के बाद तो सबकी मूँछे सफाचट हो जाती हैं...LOL” 
“ (स्माइली)अच्छा एक बात बताओ तुम्हारा नाम स्वीटी है या मनु?” 
“गेस करो” 
“उम्म्म स्वीटी!” 
“नाहह्….मानवी नाम है मेरा । सहेलियाँ मनु बुलाती हैं। तुम्हारा नाम भी मनु ही है न?” “नाहह्ह्….’मानव’ नाम है LOL, ओके बाद में बातें करते हैं मीटिंग का समय हो गया है।” “ओके BOL” 
“अब ये BOL का मतलब क्या हुआ?” 
“ बेस्ट ऑफ़ लक बुद्धू” 
“ओ ओके बाय” 
“मतलब कुछ भी तो शार्ट कट” 
“हां..... हा हा हा हा….बाय” 
 छोटे शहरों से युवक जब महानगरों का रुख करते हैं तो दोस्तों की संगत में सबसे पहली कुर्बानी मूँछों की ही होती है। भले ही जवानी कब की गुज़र गयी हो पर मूँछे छिलवा कर जवान दिखने की ख्वाहिश बनी रहती है। इस मामले में ‘मानव’ थोड़ा अलग था। उसे अपनी मूँछे बेहद प्रिय थीं। बड़े शहर ने उसकी मूँछों को नहीं छीना था। अपने सपनों को मूर्त रूप देने के लिए वह घर से पैसे लिए बिना, महानगर भाग आया था। अपनी मेहनत और लगन से उसने नौकरी पा ली लेकिन मूँछें कटने नहीं दी। घनी मूँछे उसके चेहरे पर फबती थीं। वास्तविक दुनिया में वो स्त्रियों से दूर रहता था। उनसे जल्दी घुलमिल नहीं पाता था, लेकिन आभासी दुनिया में स्त्रियों से चैटिंग और फ्लर्टिंग उसकी आदत थी। लफ्फाज़ी में उससे कोई नहीं जीत पाता। उसकी इसी काबिलियत पर स्त्रियां रीझ जातीं। मानवी और मानव दोनों के नाम बिलकुल एक से लेकिन दोनों एक दूसरे से बिलकुल भिन्न थे। जहां मानव किसी भी चीज़ को गंभीरता से नहीं लेता चाहे वो रिश्ते हीं क्यों ना हो वहीं मानवी के लिए छोटी छोटी चीज़ें भी महत्वपूर्ण हुआ करतीं। वो टूट रहे रिश्तों को जोड़ने की कोशिश में लगी रहती। उसने अपने माता-पिता को अलग होते देखा था। वो अपनों के खोने का दर्द अच्छे से जानती थी। उसे लगता था कि मर रहे रिश्ते में भी जान फूंकी जा सकती है, बशर्ते सच्चे दिल से इसके लिए कोशिश की जाए। मानवी और मानव की रुचियाँ लगभग एक सी थीं। दोनों को ही पढ़ने और नाटक करने का शौक था। शेक्सपियर और उनका लिखा ड्रामा ‘रोमियो जूलिएट’ दोनों के ही पसंदीदा थे। चैटिंग करते हुए वे घंटों ‘रोमियो जूलिएट’ के संवाद बोलते हुए उन्हें जी रहे होते। उनदोनों के कुछ चुनिंदा दोस्तों को इसकी भनक लग चुकी थी। दोनों के कॉमन दोस्त उन्हें ‘रोमियो-जूलिएट’ कह कर छेड़ने लगे थे। मानव और मानवी - दोनों हमउम्र थे। एक ही शहर के रहने वाले थे और महानगर में अपना भविष्य संवार रहे थे। मानवी भी उसी महानगर में नौकरी कर रही थी, जहां मानव की नौकरी थी। शुरुआत में हल्की-फुल्की बातचीत से शुरू होने वाली ‘चैटिंग’ धीरे-धीरे 24 घंटे वाली ‘चैटिंग’ में बदल गयी थी। कभी ‘स्माइली’, कभी ‘इमोटिकॉन्स’, कभी ‘साइन लैंग्वेज’ तो कभी ‘हम्म्’... नज़दीकियां बढ़ीं और बात वीडियो कॉल तक पहुँच गयी। दोनों सायबर लव की गिरफ्त में आ चुके थे। अब तक साक्षात मुलाक़ात नहीं हुई थी, लेकिन प्यार परवान चढ़ चुका था। साइबर दुनिया में एक दूसरे की बातों का वैचारिक विरोध करते हुए एक समय ऐसा आ गया जब दोनों एक दूसरे के कट्टर समर्थक हो गए। पहली बार दोनों एक कॉफ़ी शॉप में मिले। दिन रात चाहे जितनी भी बातें कर लें पर इस पहली मुलाक़ात में मानव की नज़रें लगातार झुकी रहीं। मानवी की तरफ उस ने नज़र उठाकर भी नहीं देखा । उससे बातें करते हुए मानव के हाथ-पाँव काँप रहे थे। जो लड़का सोशल नेटवर्किंग साईट पर इतना बिंदास हो, उसका यह रूप देखकर मानवी की हँसी नहीं रुक रही थी और मानव अपनी झेंप मिटाने के लिए इधर-उधर की बातें करने की, जबरदस्ती वाले चुटकुले सुनाने की कोशिश कर रहा था। बीतते समय के साथ मानवी का मानव पर भरोसा गहरा होता चला गया। दुनिया से बेखबर दोनो ने उस महानगर में एक साथ, एक ही फ्लैट में रहने का निर्णय ले लिया । अब वे दोनों एक दूसरे के पूरक और साझेदार बन गए थे। मानव कभी खुलकर नहीं हँसता था और मानवी की ख़ुशी अक्सर मानव के होंठों पे छिपी मुस्कान में फँस कर रह जाती। गर्मी अपने चरम पर थी, पर इश्क़ के मौसम ने दोनों के अहसास ही बदल डाले थे। एक रोज़ जब गर्मी की उबाऊँ मौसम से ऊबकर सूखी सी दोपहर उबासी ले रही थी। पारा 40 डिग्री पहुँचने को था। गर्मी से बचने के लिए लोग अपने घरों में दुबके पड़े थे। प्यासी चिड़ियाँ पानी की खोज में भटक रही थी। उस रोज़ दोनों ही घर जल्दी चले आये थे। उस उबाऊँ-तपती दुपहरी में सारे बंधन टूट गए। उमस और इश्क़ अपने उत्कर्ष पर था। उस दिन घर, घर नहीं रहा ‘पृथ्वी’ बन गया और मानव-मानवी पूरी पृथ्वी पर अकेले, बिलकुल ‘आदम-हौव्वा’ की तरह। तृप्त मानव गहरी नींद सो गया लेकिन मानवी की आँखों में नींद नहीं थी। मानवी के होठों पर मुस्कान तैर गयी। देर तक उस सुखद अहसास को वो महसूस करती रही । उस दिन मानवी को एक पूर्ण स्त्री होने का अहसास हुआ। उसका अंग अंग खिल चुका था, चेहरे पे कांति महसूस हो रही थी। चाल में अल्हड़पन की जगह एक लचक आ गयी थी। उन दोनों के बीच कोई ‘कमिटमेंट’ नहीं था, कोई सात फेरे और वचन नहीं...ना हीं मांग में सिन्दूर या मंगलसूत्र का बंधन, लेकिन भरोसा था। उसी भरोसे पर तो उसने अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया। मानवी की दुनिया अब मानव के इर्द-गिर्द सिमटने लगी थी। उसे अब सोशल साइट्स पर स्त्रियों के संग मानव की फ्लर्टिंग पसंद नहीं आती थी। इस पर मानवी अक्सर अपना गुस्सा ज़ाहिर भी कर देती और मानव अक्सर खामोश रह जाता। छोटे शहर की ये लघु प्रेम कथा धीरे धीरे बड़ी कहानी में बदलती जा रही थी। मानव के बुलेट की आवाज़ मानवी दूर से ही पहचान जाती। जब दोनों अपने शहर जाते तो ये बुलेट ही थी जो दोनों को मिलवा पाती। मानव की बुलेट घड़घडाती, मानवी खिड़की पे आ जाती। एक दूसरे की एक झलक के लिए बेताब दोनों के होठों पर मुस्कान थिरक उठती। दोनों आपस में अक्सर वैसे ही बातें करने लगते जैसे की सचमुच के रोमियो-जूलिएट ही हों। दोनों की ‘लव लाइफ’ बुलेट की तरह ही तेज़ गति से भाग रही थी, अंतर सिर्फ इतना था कि बुलेट शोर मचाती है और ये बेहद खामोश थी। दिन बीत रहे थे। कुछ करीबी दोस्तों के सिवाय उनदोनों के इस सह-जीवन की खबर किसी को नहीं थी । साथ रहते हुए दो साल हो गए थे। एक रोज़ मानवी के मोबाइल पर उनदोनों की एक अंतरंग तस्वीर किसी अनजान नंबर से आई। मानवी को काटो तो खून नहीं। वो इस बारे में बात करने के लिए मानव को ढूंढने लगी, पर मानव उसे पूरे घर में कहीं नहीं मिला। उसका फ़ोन भी स्विच ऑफ आ रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ये तस्वीर किसने ली ? इतनी अंतरंग तस्वीर या तो वो खुद ले सकती थी या फिर मानव ! उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये भेजने वाले तक पहुंची कैसे ? उसने तस्वीर भेजने वाले नंबर पर फ़ोन लगाया पर वो भी स्विच ऑफ था। उसके बाद मानवी ने एक कॉमन दोस्त को फ़ोन लगाकर सारी बातें कह सुनाई। उसने थोड़ी ही देर में ,बहुत सारी ऐसी सूचनाएं मानवी को दी जिससे उसके होश उड़ गए। उसने बताया कि उनदोनो की और भी वैसी तस्वीरें और विडियोज़ मानव ने एक साइट पर डाल रखे हैं। “मानव ने?” “हाँ मानव ने” मानवी को विश्वास नहीं हो रहा था। उसे यही लग रहा था कि उनदोनों के रिश्ते को वह कॉमन दोस्त तोड़ना चाहता है इसलिए ऐसा बोल रहा है, लेकिन फिर उसका फ़ोन बंद क्यों आ रहा है! ऐसा तो वो कभी नहीं करता ! मानवी को पूरी दुनिया अंधकारमय लगने लगी। उसे उस दोस्त की बातों पर यकीं होने लगा था। क्या इसलिए उसने कभी खुलकर अपने प्यार का इजहार नहीं किया? वो फूट- फूट कर रोने लगी। “मैं मान नहीं सकती, ही लव्स मी, ही लव्स मी यार” मानवी ने चिल्लाते हुए बोला। सिसकियों में उसके शब्द अस्पष्ट थे। जब अंदर का तेज़ाब बह निकला तो वह पुलिस स्टेशन की ओर चल पड़ी। शिकायत दर्ज़ करवाने के दौरान उसे कई ज़रूरी-गैरज़रूरी सवालों से गुज़रना पड़ा। मानवी हर सवाल का जवाब बड़ी ही दृढ़ता से दे रही थी। बात जब बिना ब्याह के सह-जीवन की आई, और कांस्टेबल उसे ही कटघरे में खड़ा करने लगी, तो उसके सब्र का बाँध टूट गया। उसका दम घुटने लगा। वह वहाँ से उठी और घर के लिए चल पड़ी। उस दिन हर नज़र उसे चुभ रही थी, सबकी मुस्कानें व्यंग्यात्मक लग रही थीं। उस रोज़ उसे सभी पुरुषों की आँखों में भेड़िये सी चमक दिख रही थी। मानवी शर्म से पानी-पानी हुई जा रही थी। नज़र उठाने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। घर पहुँचने के साथ ही उसने मानव पर चिल्लाना शुरू कर दिया। क्षोभ और शर्मिंदगी से वह पागल हुई जा रही थी। हर कमरे में जाकर वह मानव को ढूँढ़ रही थी,लेकिन मानव कहीं नहीं था। वह जा चुका था, हमेशा के लिए। आभासी दुनिया से शुरू हुआ प्यार आभासी होकर रह गया। उसे पूरी दुनिया के सामने नंगा कर के मानव भाग चुका था। इस धोखे के लिए मानवी बिलकुल तैयार नहीं थी। उसने सम्पूर्णता के साथ मानव को स्वीकार किया था। वह मानव के इस ओछेपन को स्वीकार नहीं कर पा रही थी। दो साल तक दोनों सह जीवन में रहे थे। मानवी उसके नस-नस से वाकिफ थी, लेकिन ऐसे किसी धोखे की गंध से वह दूर रह गई। उसे आत्मग्लानि हो रही थी, दुःख हो रहा था। वह दुबारा पुलिस के पास नहीं जाना चाहती थी। घर पर कुछ बता नहीं सकती थी। मानव ने जो किया उसकी माफ़ी भी संभव नहीं थी। मानवी ने सोशल मीडिया के ज़रिये मानव को ट्रैक करना शुरू किया। जालसाजी करने वाला शख्स हमेशा अपने बचाव की तैयारी के साथ आगे बढ़ता है। मानव भी फेसबुक, व्हाट्सएप्प, ट्विटर सबकी पुरानी आइ डी को ब्लाक कर नई आइ डी बना चुका था। मानवी हार मानने वाली नहीं थी। एक पुरानी कड़ी से उसका नया प्रोफाइल मिल गया। मानवी ने एक नकली प्रोफाइल बनाई और उससे दोस्ती कर ली। नकली प्रोफाइल के ज़रिये मानव को मजबूर कर दिया कि वो उससे मिले। एक बार फिर मानव आत्म मुग्ध हुआ जा रहा था। मिलने की बात सोचकर बार-बार वह अपनी मूँछों पर ताव दे रहा था। आँखों में वही शैतानी चमक थी और होठों पे हँसी थिरक रही थी। दोनों के मिलने का स्थान मानव के ऑफिस का 'टेरिस गार्डन’ तय हुआ। मानव बेसब्री से आभासी दुनिया की इस नई दोस्त का इंतज़ार कर रहा था। एक-एक पल गुज़ारना उसके लिए मुश्किल हो रहा था। थोड़े इंतज़ार के बाद मानवी उसके सामने थी। उसे देखकर मानव चौंक पड़ा। जब तक वो कुछ समझ पाता, कुछ बोलता, मानवी बिजली की तेज़ी से आई और तेज़ाब की पूरी शीशी उसके चेहरे पर उडेल दी। उसे कुुुह समझ नहीं आया। थोड़ी ही देेेर में वह छटपटाने लगा। मानवी पर तो जैसे भूत सवार था। वह चिल्लाती जा रही थी “तुमने मेरी ज़िन्दगी बर्बाद की, अब मैं तुम्हें बर्बाद करूंगी। इसी चेहरे से तुम सबको छलते हो न, अब ये चेहरा ही खत्म।” मानव अवाक था। उसने इस अंजाम की उम्मीद भी नहीं की थी। उसके सोचने समझने की शक्ति ‘म्यूट’ हो गयी थी। मानवी चीख रही थी, ठहाके लगा रही थी। मानव  छटपटा रहा था। उसकी इस हालत को देखकर मानवी को अहसास हुआ कि वो अब भी उस इंसान से प्यार करती है। उसका नफरत क्षणिक था लेकिन प्रेम स्थायी है। उससे उसकी हालत-छटपटाहट बर्दाश्त नहीं हो पा रही थी। देखते ही देखते मानवी ने भी उस ऊँची छत से छलांग लगा दी। दो ज़िंदगियाँ ‘साइबर ट्रैप’ में फंसकर तबाह हो चुकी थी। 

 © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

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