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लता मंगेशकर से जुड़ाव




लता मंगेशकर के गीतों से पहला परिचय कब हुआ याद नहीं। मम्मी अक्सरहा उनके गीत गुनगुनाती थीं। तब किसी के गाने की तारीफ करते हुए यही कहा जाता था कि वह तो एकदम लता मंगेशकर की तरह गाती है, यानी लता मंगेशकर संज्ञा से विशेषण बन चुकी थीं। 

गर्मी की उमस भरी रातों को छत पर पानी का छिड़काव होता, फिर सोने के लिए गद्दे बिछाए जाते। खाना खाने के बाद हम सभी छत पर चले जाते। टिमटिमाते तारों से भरे खुले आसमान के तले मम्मी और हम सभी बच्चे लेट जाते, फिर शुरू होता गाने का सिलसिला। मम्मी को लता मंगेशकर और मुकेश के गाने विशेष तौर पर पसंद थे। चाँद, तारे, हवा, बादल - किसी पर भी गाने का सिलसिला शुरू होता तो बस चलता रहता। कभी मन हुआ तो अंत्याक्षरी भी शुरू हो जाती। 

जब पहली बार टेपरिकॉर्डर आया तो साथ में लता मंगेशकर और मुकेश के गानों का कैसेट भी आया। पहली बार लता जी के लिए 'दी' का सम्बोधन भी मम्मी से ही सुनी थी। तब ज़्यादा उम्र नहीं थी अल्प बुद्धि थी, मैंने मम्मी से पूछा भी था 'वह तुम्हारी दीदी हैं क्या?' मम्मी हंसते हुए बोली थीं 'हाँ'। 'नैना बरसे रिमझिम', 'झूम झूम ढलती रात', 'नाम गुम जाएगा' ये कुछ ऐसे गाने थे जो मम्मी अक्सर गुनगुनाती थीं। मुझे ऐसा लगता कि लता मंगेशकर सिर्फ दर्द भरे ही गाने गाती हैं, फिर खुद से ये सवाल भी करती कि आखिर क्या कष्ट है इन्हें जो ये सिर्फ दर्द भरे नग्में ही गाती हैं? यही कारण था जो मुझे आशा भोंसले के गीत ज़्यादा पसंद आते थे। बड़े होने के बाद पसंद बदलने लगी। शब्दों के अर्थ समझ आने लगे। तब लता मंगेशकर के गाए दो गीत अक्सर एक अलग तरह की टीस दे जाते।  'तू जहां जहां चलेगा, मेरा साया साथ होगा' और 'रहे न रहे हम महका करेंगे', ये दोनों गीत सुनने पर ऐसा लगता जैसे किसी ने कलेजा निकाल कर मसल दिया हो। हालांकि गीत की समझ तब भी नहीं थी।  

एक रोज़ मेह के रथ पर नाचती परियां मही पर उतर रही थी। उनके स्वागत में पीले कनैल के फूल के गलीचे बिछे थे। उस रोज पापा की नब्ज की तरह दिन भी धीरे-धीरे शिथिल पड़ता जा रहा था। सभी जानते थे कि क्या होने वाला है, सभी की आंखों में आंसू अटके हुए थे। दूर कहीं गाना बज रहा था 'तू जहां-जहां चलेगा, मेरा साया साथ होगा'। उस घड़ी एक अलग तरह का सम्बल आ गया था। 'ऊर्जा कभी खत्म नहीं होती और आत्मा तो एनर्जी ही है। पापा तो हमेशा हमारे साथ हैं फिर क्यों गम करना।' उस गाने ने उस एक क्षण में मेरे सोचने की दिशा ही बदल दी। इसी तरह 'रहे न रहे हम' गीत सुनकर ऐसा लगता है जैसे मम्मा की ओर से ये हमारे लिए ही तो है। ये गाना सिर्फ गाना न होकर मेरे लिए किसी मंत्र से कम नहीं, जो मुश्किल से मुश्किल घड़ी में भी सुकून देता है। लता जी ने भी चोला ही तो बदला है, वह ऊर्जा पुंज किसी और रूप को धरने की तैयारी में होगा। 


Comments

Archana said…
Waah!Ab mein kya bolun ❤

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