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Showing posts from 2021

एक कहानी यह थी...

  उन दोनों की वह पहली मुलाकात थी। पहली मुलाकात में ही उसने, इसे "एक इंच मुस्कान" पढ़ने के लिए दी, साथ ही यह आदेश भी कि इसे पढ़ो फिर इसपर चर्चा करेंगे। इसने पहले भी मन्नू भंडारी की कहानियां पढ़ी थीं, महाभोज नाटक भी देखा था, पर कभी चर्चा करने के नज़रिए से नहीं। सच कहूँ तो ये चर्चा शब्द से ही घबराती थी...कविताओं से तो फिर भी पहचान थी...पर कहानियां और उपन्यास, उनसे अभी सही में परिचय होना बाकी था... प्रगाढ़ता तो दूर की बात थी। "एक इंच मुस्कान" अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि अगला आदेश "एक कहानी यह भी" पढ़ने का मिल गया। दोनों पुस्तक का अध्ययन और चर्चा समानांतर चलती रही।  ये इसकी मन्नू भंडारी के लेखन को नए सिरे से समझने की शुरुआत थी और लेखन की भी...। इसके लिए मन्नू भंडारी न जाने कब प्रेरणा बन गई, उनकी सामान्य भाषा में लिखी कहानियां कब ज़ेहन में उतर चलीं एहसास ही नहीं हुआ। हौले से छूकर निकल जाने वाली मखमली भाषा, स्त्री मन को सहजता से शब्दबद्ध करती लेखनी...ज्यों-ज्यों मन्नू भंडारी की कहानियों से इसकी नजदीकियां बढ़ती गईं ये दोनों भी करीब आते गए। फिर तो इसने मन्नू भंड

'आएशा' के बहाने से...

2010 में एक फ़िल्म आयी थी 'धोबी घाट'। चार किरदारों वाली इस फ़िल्म का एक किरदार मर चुकी हुई यास्मीन होती है जिसकी  वीडियो डायरी के ज़रिए उसकी कहानी आगे बढ़ती है।  पति की बेवफाई से तंग आकर अंतिम वीडियो में वह खुदकुशी कर लेती है। सारे किरदार अनूठे थे पर यास्मीन, नहीं होकर भी उसकी उपस्थिति...मार्मिक अंत...दुखद था।  दो-तीन दिनों से आएशा का वीडियो देख रही जो वायरल है। आत्महत्या से पहले रिकॉर्ड की गई बातें। क्या अच्छा नहीं होता आएशा ऐसे ही वीडियो के ज़रिए अपने पति को एक्सपोज़ करती। उसे सजा दिलवाती। तुमने ये वाला रास्ता क्यों चुना आएशा? जाने क्यों आएशा के इस वीडियो को देखकर मुझे धोबी घाट की यास्मीन याद आ गयी। फ़िल्म तो सिर्फ दो-तीन घण्टे में खत्म हो जाती है और वास्तविक घटनाएं जीवन भर का मलाल दे जाती हैं।  आएशा कितनी अकेली होगी, कितना परेशान रही होगी, जो उसने उसका चुनाव किया जिसका अधिकार हमें नहीं है। आएशा...काश! तुम ने खुद को थोड़ा और वक़्त दिया होता। आएशा की वीडियो