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'बारिश के अक्षर'

मेरी ज़िंदगी के कुछ खुशनुमा और महत्वपूर्ण लम्हों में से एक रही 11 जनवरी 2020 की शाम। यह पहला मौका था जब मेरी कहानी संग्रह 'बारिश के अक्षर' के लोकार्पण के साथ ही उस पर परिचर्चा भी होनी थी। घबराहट थी और एक डर भी था इतने बड़े मंच पर कार्यक्रम सफलतापूर्वक हो पाएगा? यह चिंता खाए जा रही थी, तिस पर सबसे अंतिम वाला चंक यानी शाम साढ़े छह से पौने आठ का समय मिला था। ऐसा लग रहा था कि पता नहीं दर्शक-श्रोता रहेंगे भी या नहीं!  वक्ता के रूप में जिन्हें आमंत्रित किया गया उनमें से दो ने पहले ही अपनी असमर्थता जता दी और तीसरे अतिथि/वक्ता ने कार्यक्रम वाले दिन फोन ही नहीं उठाया। मतलब सारी परिस्थितियां उलट थीं। अपनी ओर से तैयारी पूरी थी। साथियों-रिश्तेदारों का साथ और सिर पर हाथ बना हुआ था। कार्यक्रम शुरू हुआ और इतना अच्छा गया कि डर-घबराहट-ऐन मौके पर डिच किये जाने की तकलीफ सब खत्म हो गयी। 
लेखक मंच पर कहानी संग्रह ‘बारिश के अक्षर’ का लोकार्पण सफलतापूर्वक संपन्न हुआ इसके साथ ही परिचर्चा भी सफल रही। अतिथियों का स्वागत और आयोजन में सहयोग श्रेया सिन्हा, रजत बक्सी, रूहिका बक्सी, डॉ नेहा श्रीवास्तव,अनुपम श्रीवास्तव, संध्या शर्मा, मोहित एवं अमित ने किया। पुस्तक पर चर्चा के दौरान लेखिका-शिक्षाविद एवं मेरी बड़ी बहन स्वयम्बरा ने कहा कि प्रियम्बरा ने विषय को संवेदनशीलता के साथ परोसा है।  कहीं-कहीं कहानियों में ठहराव की ज़रूरत है. उन्होंने ‘सीलन’ कहानी के लिए प्रियम्बरा को बधाई दी। आलोचक एवं समीक्षक गंगा शरण सिंह ने कहानियों की विषयवस्तु की तारीफ़ की। उन्होंने लेखिका को सलाह दी कि अच्छा लिखने के लिए पढ़ना ज़रूरी है, इसलिए कम लिखें और ज़्यादा से ज़्यादा कहानियां पढ़ें। पत्रकार एवं विचारक प्रसून कुमार मिश्र ने संकलित कहानियों का बारीकी से विश्लेषण किया। उन्होंने ‘साइबर ट्रैप’ और टुकड़े में ज़िन्दगी को  साइबर ज़िन्दगी के दो पहलुओं को दर्शाने वाली कहानियाँ बताया। लोक सभा टीवी के सम्पादक श्याम किशोर सहाय ने कहा कि कहानियों से पता चलता है कि लेखिका के पास अपनी दृष्टि है, संवेदनशीलता है. परिचर्चा की अध्यक्षता लोक सभा टीवी के मुख्य कार्यकारी एवं मुख्य सम्पादक डॉ आशीष जोशी कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज के दौर में जब पत्रकारों पर यह आरोप लग रहा है कि वे संवेदनशील नहीं हैं वैसे में प्रियम्बरा की कहानियां जताती हैं कि पत्रकारों की संवेदना अभी मरी नहीं है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि थे वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव एवं सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार प्रेम जन्मेजय। राहुल देव ने कहा कि संवेदना समय की जरूरत है वहीं प्रेम जन्मेजय ने पुस्तक की भूमिका पढ़ते हुए कहा कि इसे पढ़कर ‘बारिश के अक्षर’ को पढने की इच्छा हो रही है। कार्यक्रम का संचालन वनिका प्रकाशन की प्रमुख नीरज शर्मा ने किया। अंत में मुझ से प्रश्नोत्तर के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ। इसके साथ ही यह एहसास हुआ कि जो दिखता है सच वही नहीं होता। सच उससे बहुत अलग होता है। 
धन्यवाद गंगा शरण जी का, जिनसे कोई जान -पहचान नहीं होने के बावजूद सिर्फ मित्र के कहने पर वह कार्यक्रम में शामिल हुए, अपना कीमती वक़्त दिया।  लोक सभा टीवी के सभी दोस्तों का धन्यवाद जिन्होंने हिम्मत बढ़ाई, साथ दिया। राहुल देव सर और प्रेम जनमेजय जी को कोटिशः धन्यवाद जिन्होंने मेरी गलती को क्षमा करते हुए अपने आशीर्वचन से मुझे प्रोत्साहित किया। दर्शकों और श्रोताओं की भीड़ अंत तक बनी रही इसलिए उन सभी का धन्यवाद। रणविजय राव जी एवं ललित जी का भी विशेष आभार।  
मैं नहीं जानती भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है किंतु वर्तमान जो अब अतीत बन गया मेरी ज़िंदगी के महत्वपूर्ण लम्हों में शुमार है। 

Comments

Anup kumar said…
एक बार फिरसे बहुत बहुत बहुत बहुत ज़्यादा बधाई छोटी दीदी..☺️
वाक़ई यह मेरे लिये भी बहुत गर्व भरा पल रहा दीदी..😊
🙏
Archana said…
Awesome Priyam. My blessings for your achievement that follows! _ Poorani Rangarajan
Priyambara said…
बहुत बहुत धन्यवाद :-)

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