अभी-अभी ‘द लल्लनटॉप डॉट कॉम’ पर एक खबर पढ़ी। दुनिया की टॉप 100 पॉर्न वेबसाइट्स में शामिल एक साइट है। इस के टॉप ट्रेंड वाले सेक्शन में हैदराबाद की वेटनरी डॉक्टर (जिसे बलात्कार के बाद जला कर मार डाला गया) का नाम सबसे ऊपर है। अभी तक करीब 8 मिलियन से ज्यादा बार उसके नाम को इस वेबसाइट में सर्च किया जा चुका है। ये सोच कर भी हैरत होती है और दिल दहल जाता है कि ऐसे वीडियो देखने वाले लोग लाखों में हैं (लल्लनटॉप पर प्रकाशित होने तक 8 मिलियन लोग) … और ये वैसे ही लोग हैं जो इन्टरनेट का इस्तेमाल करते हैं, जिन्हें ऐसी वेबसाइट की जानकारी है। एक अन्य वेबसाइट ब्लॉग ‘टॉकवॉकर’ के आंकड़ों के अनुसार सवा अरब की आबादी वाले भारत की लगभग 70 फीसदी जनता सोशल मीडिया का इस्तेमाल करती है। वहीं इन्टरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों में से करीब 97 फीसदी लोग ऐसे हैं जो ऑनलाइन विडियो देखने के लिए इन्टरनेट का इस्तेमाल करते हैं। मतलब जो लोग सोशल मीडिया पर ऐसी घटनाओं पर ‘लानत-मलामत’ करते हैं रोना पीटना मचाते हैं संभव है उनमें से कुछ लोगों ने कभी न कभी ऐसे वीडियो को देखा हो। फेसबुक पर भी ऐसे अनेक ग्रुप सक्रिय हैं,जहां खुलेआम पोर्न विडियो पोस्ट किये जाते हैं। इन पर मैं पहले भी लिख चुकी हूँ, पर यहाँ कोई फर्क नहीं पड़ता। चाहे आप रिपोर्ट करें या ब्लाक करें। कल ही मेरी नज़र एक ऐसे ग्रुप पर गयी जिसका नाम ‘सविता’ था और उसे बनानेवाली भी महिलाएं थीं । पब्लिक ग्रुप जिसमें महिलाओं की भद्दी और किसी-किसी की व्यक्तिगत तस्वीरें डाली गयी थीं, भद्दे पोस्ट के साथ, मोबाइल नम्बर के साथ। मैंने उसकी रिपोर्ट की, फिर उसे ब्लॉक किया, दुबारा फिर से वह ग्रुप नज़र आया। मैंने दुबारा उसकी रिपोर्ट की, फिर वह दिखना बंद हुआ। यानी ऐसे विक्षिप्त मानसिकता वाले लोग हमारे इर्द-गिर्द हैं। संभव है आपके-हमारे फ्रेंडलिस्ट में भी हों। इसे विक्षिप्त मानसिकता ही कहेंगे जिसे किसी के दर्द में सुकून मिले, ख़ुशी मिले इससे ज्यादा विक्षिप्तता और वीभत्स क्या होगा। वह लडकी तड़पी होगी, चीखी और चिल्लाई होगी, रोई होगी, गिड़गिड़ाई होगी और उसे लोग देखना चाहते हैं मनोरंजन के लिए। ऐसी घटिया मानसिकता वाले इक्के-दुक्के नहीं बल्कि लाखों में हैं… लानत है ऐसे समाज पर ।
कुछ लोग मुझे इनबॉक्स में आकर सलाह दे रहे हैं कि इसके खिलाफ आवाज़ उठाइये, क्रान्ति कीजिये! क्रान्ति… किसके खिलाफ… या यूँ कहें किस -किस के खिलाफ ? यहाँ तो आदमी की खाल में भेड़िये मिलते हैं? हर रोज़ एक नया अनुभव। अभी एक साल पहले ही तो ऐसे लोगों की मानसिकता पर एक कार्यक्रम भी बनाया था… जानने की कोशिश की थी कि इस तरह का कुकृत्य करने वाले किस सोच के होते होंगे? विशेषज्ञों ने बताया कि इसका सबसे बड़ा कारण पोर्नोग्राफी है। छोटे-छोटे बच्चों के हाथ में आज स्मार्ट फोन है, लेकिन उन्हें क्या देखना है और क्या नहीं इसे बताने या समझाने वाला कोई नहीं है। आज संयुक्त परिवार की अवधारणा भी खत्म होती जा रही है। एकल परिवार में माता-पिता दोनों कामकाजी हैं। ऐसे में बच्चों को देने के लिए उनके पास वक़्त नहीं है, पर उन्हें व्यस्त रखने के लिए उनके पास मोबाइल है। उन्हें मोबाइल देते वक़्त वे एक बार भी नहीं सोचते कि बच्चे उसके माध्यम से कई ऐसी चीज़ें भी देख लेंगे जिसे समझने के लिहाज़ से उनकी उम्र बहुत छोटी है। भारत की जनसंख्या में युवाओं का प्रतिशत ज़्यादा है। यह भी गौर करने वाली बात है कि इस तरह के कुकृत्यों के ज़्यादातर मामलों में युवा (कभी-कभी अवयस्क ) शामिल होते हैं। एक आंकड़ा यह भी मिला कि भारत में हर 6 घंटे में एक महिला बलात्कार का शिकार बनती है। 1247 मामलों में बलात्कार सोशल मीडिया के आनलाइन रहने वाले मित्र या लिव-इन-में रहने वाले पार्टनर द्वारा किया गया। महिलाओं के प्रति अपराध में दोषियों को सजा दिलवाने की दर 66 प्रतिशत रही जबकि लम्बित मामलों की दर 91 प्रतिशत रही। आज यह ज़रूरी है कि इन मुद्दों पर खुलकर चर्चा हो। नौ-दस की उम्र से ही घर में एवं स्कूलों में बच्चों को सेक्स की शिक्षा दी जाए जिससे वे सही शिक्षा पाएं। ये भी ज़रूरी है कि बेटियों की जगह बेटों के साथ ज़्यादा सख्ती की जाए। बेटा-बेटी दोनों बराबर हैं इस बात की शिक्षा उन्हें बचपन से दी जाए। इसके साथ ही जो सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि अपराधियों को ऐसी कड़ी सज़ा दी जाए जो दूसरों के लिए एक सबक बन जाए। हर बार ऐसी वीभत्स घटनाएं घट जाती हैं…जिसकी चीख संसद तक पहुँचती तो है फिर भी जाने वो कौन सी वजहें हैं जो इस पर लगाम लगने की जगह फिर-फिर ऐसी घटनाएं घटती हैं और मूक बने देखते हैं फिर सोशल मीडिया पर विलाप शुरू कर देते हैं। क्या कभी ऐसे अपराधियों के मन में डर पैदा किया जा सकेगा ? 2004 में जघन्यतम अपराध के लिए धनञ्जय चटर्जी को फांसी दी गयी थी, उसके बाद ??? हम आज भी वहीं के वहीं हैं !
कुछ लोग मुझे इनबॉक्स में आकर सलाह दे रहे हैं कि इसके खिलाफ आवाज़ उठाइये, क्रान्ति कीजिये! क्रान्ति… किसके खिलाफ… या यूँ कहें किस -किस के खिलाफ ? यहाँ तो आदमी की खाल में भेड़िये मिलते हैं? हर रोज़ एक नया अनुभव। अभी एक साल पहले ही तो ऐसे लोगों की मानसिकता पर एक कार्यक्रम भी बनाया था… जानने की कोशिश की थी कि इस तरह का कुकृत्य करने वाले किस सोच के होते होंगे? विशेषज्ञों ने बताया कि इसका सबसे बड़ा कारण पोर्नोग्राफी है। छोटे-छोटे बच्चों के हाथ में आज स्मार्ट फोन है, लेकिन उन्हें क्या देखना है और क्या नहीं इसे बताने या समझाने वाला कोई नहीं है। आज संयुक्त परिवार की अवधारणा भी खत्म होती जा रही है। एकल परिवार में माता-पिता दोनों कामकाजी हैं। ऐसे में बच्चों को देने के लिए उनके पास वक़्त नहीं है, पर उन्हें व्यस्त रखने के लिए उनके पास मोबाइल है। उन्हें मोबाइल देते वक़्त वे एक बार भी नहीं सोचते कि बच्चे उसके माध्यम से कई ऐसी चीज़ें भी देख लेंगे जिसे समझने के लिहाज़ से उनकी उम्र बहुत छोटी है। भारत की जनसंख्या में युवाओं का प्रतिशत ज़्यादा है। यह भी गौर करने वाली बात है कि इस तरह के कुकृत्यों के ज़्यादातर मामलों में युवा (कभी-कभी अवयस्क ) शामिल होते हैं। एक आंकड़ा यह भी मिला कि भारत में हर 6 घंटे में एक महिला बलात्कार का शिकार बनती है। 1247 मामलों में बलात्कार सोशल मीडिया के आनलाइन रहने वाले मित्र या लिव-इन-में रहने वाले पार्टनर द्वारा किया गया। महिलाओं के प्रति अपराध में दोषियों को सजा दिलवाने की दर 66 प्रतिशत रही जबकि लम्बित मामलों की दर 91 प्रतिशत रही। आज यह ज़रूरी है कि इन मुद्दों पर खुलकर चर्चा हो। नौ-दस की उम्र से ही घर में एवं स्कूलों में बच्चों को सेक्स की शिक्षा दी जाए जिससे वे सही शिक्षा पाएं। ये भी ज़रूरी है कि बेटियों की जगह बेटों के साथ ज़्यादा सख्ती की जाए। बेटा-बेटी दोनों बराबर हैं इस बात की शिक्षा उन्हें बचपन से दी जाए। इसके साथ ही जो सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि अपराधियों को ऐसी कड़ी सज़ा दी जाए जो दूसरों के लिए एक सबक बन जाए। हर बार ऐसी वीभत्स घटनाएं घट जाती हैं…जिसकी चीख संसद तक पहुँचती तो है फिर भी जाने वो कौन सी वजहें हैं जो इस पर लगाम लगने की जगह फिर-फिर ऐसी घटनाएं घटती हैं और मूक बने देखते हैं फिर सोशल मीडिया पर विलाप शुरू कर देते हैं। क्या कभी ऐसे अपराधियों के मन में डर पैदा किया जा सकेगा ? 2004 में जघन्यतम अपराध के लिए धनञ्जय चटर्जी को फांसी दी गयी थी, उसके बाद ??? हम आज भी वहीं के वहीं हैं !
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